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________________ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म अपने झगड़े स्कूलोंमें ही शुरू कर देंगे और उससे चातुर्यामके बजाय हिंसाका ही प्रसार होगा । ९२ 1 तो फिर चातुर्यामकी शिक्षा कैसे दी जाय ? आज जैसे पदार्थविज्ञान अथवा मनोविज्ञानकी शिक्षा दी जाती है वैसे ही यह शिक्षा दी जानी चाहिए । चातुर्यामके प्रयोग प्रथमतः पार्श्वनाथने किये । वे कहाँतक सफल हुए और बादमें उनके विपर्यास होनेके क्या क्या कारण हुए, आदि सब बातें अध्यापक अपने विद्यार्थियोंको सिखाएँ । भगवान् बुद्धने अपने अष्टांगिक मार्गके द्वारा इस चातुर्यामका अच्छा विकास किया । राजकीय सत्ता निरंकुश और हिंसात्मक होनेसे बुद्धके प्रयोग भी निष्फल हुए । उसके बाद ईसा मसीहने इन यामोंके प्रयोग किये । परंतु यहोवाका मिश्रण हो जानेसे उनसे लाभकी अपेक्षा हानि ही अधिक हुई । महात्मा टालस्टायने अपने लेखों द्वारा यह साबित किया कि यदि इन यामोंमें मनुष्योपयोगी शरीर-श्रम जोड़ दिये जायँ तो ये स्थायी बन जाएंगे। परंतु उनके लिए प्रत्यक्ष प्रयोग करके दिखाना संभव नहीं हुआ। दूसरी बात यह है कि उन्होंने यहोवाको नहीं छोड़ा और अपने तत्त्वज्ञानको इंजील ( नई बाईबिल ) पर स्थापित करनेकी कोशिश की । परंतु आज यूरपके शिक्षित लोगोंकी बाइबिल या ईश्वरपर श्रद्धा नहीं रही है । अतः टालस्टायका तत्त्वज्ञान भी लोगोंको नहीं जँचता । महात्मा गाँधी ह प्रत्यक्ष सिद्ध करके दिखाया कि अहिंसा और सत्यके आधारपर एक बड़ा आन्दोलन किया जा सकता है । परन्तु ये याम अभी प्रयोगावस्था में हैं । स्वयं गाँधीजी ही उन्हें सत्य और अहिंसा के प्रयोग कहते हैं । इन प्रयोगोंमें खतरा ये प्रयोग सांप्रदायिक नहीं होने चाहिए | इतना सूत कातना चाहिए, भगवद्गीताका पारायण करना चाहिए, सुबह-शाम भजन करना
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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