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________________ चातुर्यामकी शिक्षा ( मत ) प्राप्त करना और चुनाव होनेपर अपना स्वार्थ-साधन करते रहना ही लीगी नेताओंका कार्यक्रम है । एसा होते हुए भी कांग्रेस और कम्यूनिस्ट लीगी नेताओंकी खुशामद करते हैं; क्या यह आश्चर्यकी बात नहीं है ? इस मार्गसे स्वराज या साम्यवादी राजकी स्थापना करनेकी कल्पना नितांत भ्रांतिपूर्ण है । लीगियोंको न स्वराज्य चाहिए और न साम्यवाद ही। उन्हें तो केवल नौकरियाँ चाहिए और उनके लिए अंग्रेज़ चाहिए। अंग्रेजोंको यह अच्छी तरह मालूम है और लीगियोंकी ओटमें वे हमेशा अपना दाँव खेलते आये हैं । अतः लीगको खुश करना किसीके भी बसकी बात नहीं है । लीगियों और अंग्रेजोंको आपसमें गले मिलकर लोभके दलदलमें फँसने दिया जाय और इस समय तो उनकी उपेक्षा ही की जाय, यही उचित है। परंतु मुस्लिम जनताका जो बुद्धिभेद वे करते हैं, उसके लिए क्या किया जाय ? इसमें शक नहीं कि जब कांग्रेसी अपरिग्रह एवं अस्तेयके ध्येयको पूर्णरूपसे अपनाएँगे तब ग़रीबीके मारे हिन्दू और मुसलमान सभी कांग्रेसके पक्षमें आ जाएँगे। आजके लीगी नेता अंग्रेजोंके पिट बने रहेंगे; परंतु लोगोंपर उनका कोई असर नहीं रहेगा। सारांश, यह कि अन्तर्गत और अन्तर्राष्ट्रीय सभी गुत्थियाँ पार्श्वनाथके चार यामोंके द्वारा सुलझाई जा सकती हैं; केवल श्रद्धा चाहिए और फिर समय-समयपर उनके प्रयोग करनेके लिए प्रज्ञा चाहिए। चातुर्यामकी शिक्षा चातुर्यामके द्वारा जगत्का कल्याण करना हो तो उसकी शिक्षा सार्वत्रिक होनी चाहिए। इसका अर्थ यह नहीं कि जैन या बौद्ध साधुओंको पाठशालाओंमें मेजकर उनसे चातुर्याम अथवा अष्टांगिक मार्गकी शिक्षा दिलवाई जाय । अगर ऐसा किया गया तो ये साधु
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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