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________________ ७६ पार्श्वनाथका चातुर्याम धर्म हमें भी क्षमा करेगा। अर्थात् वह अत्यंत न्यायी एवं दयालु है । तथापि उसमें कुछ यहोवाका स्वभाव भी रह गया है। उसकी जो प्रार्थना ईसाने बताई है उसमें यह वाक्य भी है कि, “ और तुम हमें बुरे मार्गपर मत ले जाओ ! '* फिर भी ईसाने और उसके संतोंने पश्चिमी देशोंमें बड़ी विचारक्रान्ति कर दी । पश्चिमके लोगोंको उन्होंने ही सबसे पहले यह शिक्षा दी कि वर्णभेद एवं जातिभेदका ख़याल न करके मनुष्योंको एक-दूसरेपर प्रेम करना चाहिए । शुरू-शुरूमें तो ईसाई समाज अपरिग्रही होता था । कुछ संपत्ति होती तो उसे वे सार्वजनिक काममें लगाते । अतः यह कहा जा सकता है कि पार्श्वनाथके चार यामोंको उन्हींने काफ़ी हदतक अंगीकार किया था। ईसाका भगवान् यद्यपि दयालु और सारे मनुष्योंका पिता था, तथपि ईसाका यह निश्चित मत था कि भगवान् यहूदियोंपर विशेष कृपा रखता है । ईसा अपने प्रमुख बारह शिष्योंसे कहता है कि, “ तुम परदेशियोंकी ओर मत जाओ और सामारितन लोगोंके शहरमें प्रवेश मत करो; परंतु यहूदियोंके रेवड़मसे छूटे हुए व्यक्तियों ( The lost sheep of the house of Isreel ) के पास अवश्य जाओ।" ( Mathhew 10.5-6) एक बार कनआनकी एक स्त्री ईसाके पास गई और पिशाच-बाधासे पीडित अपनी बेटीको मुक्त करनेके लिए प्रार्थना करने लगी । तब ईसाने कहा कि, “ मुझे यहूदियोंके गिरोहमेंसे छूटे हुए व्यक्तियोंके लिए भेजा गया है।" उसने फिरसे प्रार्थना की, तो ईसाने कहा, "बच्चोंकी रोटी लेकर कुत्तोंको खिलाना उचित नहीं है । " (Matthew 15, 22-26) * Matthew 6. 13 and Luke 11-4.
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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