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________________ ईसा मसीहका यहोवा पर मैं कहता हूँ कि दुष्टताका प्रतिकार मत करो, बल्कि जो तुम्हारे दाहिने गालपर तमाचा मारे उसके सामने बायाँ गाल भी कर दो। और यदि कोई अदालतमें नालिश करके तुम्हारा कोट ले ले तो तुम उसे अपनी कमीज़ भी दे डालो.... ___ " तुमने सुना है कि, 'तुम अपने पड़ौसीसे प्रेम करो और शत्रुका द्वेष करो।' पर मैं कहता हूँ कि, 'तुम अपने शत्रुओंके साथ मित्रता करो, जो तुम्हें शाप देते हैं उन्हें तुम आशीर्वाद दो, जो तुम्हारा धिक्कार करते हैं तथा तुम्हें कष्ट देते हैं, उनके लिए तुम प्रार्थना करो । इससे तुम स्वर्गस्थ पिता ( भगवान् ) की सन्तान बनोगे; क्यों कि वह सूर्यसे अच्छे एवं बुरे दोनोंपर प्रकाश डलवाता है और अन्यायी एवं न्यायी दोनोंपर पानी बरसाता है....अतः स्वर्गस्थ पिताके समान तुम परिपूर्ण बनो।" ( Matthew b. 21-18) अपरिग्रहके सम्बन्धमें ईसा कहता है, “ कोई भी व्यक्ति दो स्वामियोंकी सेवा नहीं कर सकता; क्यों कि वह उनमेंसे एकपर प्रेम करेगा और दूसरेका द्वैष; अथवा एकका आदर और दूसरेका तिरस्कार । तुम परमेश्वर और सम्पत्तिकी सेवा नहीं कर सकोगे; अतः मैं तुमसे कहता हूँ, जीवनकी चिन्ता मत करो कि तुम क्या खाओगे और क्या पियोगे; शरीरकी चिन्ता भी मत करो कि शरीरको कैसे आच्छादित किया जायगा। क्या अन्नकी अपेक्षा जीवन श्रेष्ठ नहीं है ? और क्या कपडेकी अपेक्षा शरीर श्रेष्ठ नहीं है ?" इस उपदेशपरसे ऐसा दिखाई देता है कि ईसामसीहका देवता मूसाके यहोवासे बहुत ही भिन्न था । 'आँखके बदले आँख और दाँतके बदले दाँत' वाली यहोवाकी नीति ईसाके देवताको बिलकुल पसन्द नहीं थी। वह सबका पिता है; हम औरोंको क्षमा करेंगे तो वह
SR No.010817
Book TitleParshwanath ka Chaturyam Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmanand Kosambi, Shripad Joshi
PublisherDharmanand Smarak Trust
Publication Year1957
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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