SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरे कथागुरुका कहना है ___ लोगोंने अपनी मोतियोंकी सम्पत्तिसे देश-देशान्तर और लोक-लोकान्तरसे व्यापार किया और वहाँसे बहुत-सी नयी-नयी सम्पदाएं अपने घरोंको ले आये। अगली फसल बोनेके समय उन्होंने अपने बोजके रूपमें सुरक्षित मोतियों को बोनेके लिए निकाला, किन्तु उनके आश्चर्य और दुःखकी सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि उन मोतीके दानोंसे मोतीकी आब बिलकुल जाती रही थी और उनके ऊपर अरक्षित अन्नकी तरह घुनके कीड़े भी लग गये थे। उन किसानोंकी चिन्ता-सभामें उपस्थित होकर उस एक किसानने ही उन्हे सान्त्वना देते हुए उनका समाधान किया। ___'बन्धुओ, चिन्ताको उतनी बड़ी बात नहीं है । मेरे खेतमें अबकी फसलपर शुद्ध मोतियोंकी ही बालें लगेंगी। पिछली फसलमें अन्नके बीच जो मोतियोंके दाने उगे थे उनका केवल आकार और ऊपरी चमक ही मोतियों की थी और उनके भीतरका अत्यल्प अंश छोड़कर अधिकांश पदार्थ अन्नका ही था । अन्न की फसलके बीच शुद्ध मोती उग भी कैसे सकते हैं। मेरे खेतमें जले हुए अन्नको खादके नीचे मोतियोंके नन्हें बीज दबे पड़े हैं। वर्षा होते ही उनके अंकुर फूट निकलेंगे और मेरे खेतमें मोतियोंकी पहली फसल तैयार हो जायगी। उन मोतियोंसे आप देश-देशान्तर और लोक-लोकान्तर में व्यापार कीजिएगा और वहाँके अपने उन व्यापारियोंका ऋण भी चुकाइएगा जिन्हें आप भूलसे उनकी बहुमूल्य वस्तुओंके बदले अपने कच्चे, अन्नके मोती दे आये हैं।' मेरे कथागुरुका कहना है कि इस युगमें मोतियोंकी खेती धरतीसे उतरकर समुद्रमें पहुंच गयी है क्योंकि मनुष्यको अब और भी ऊंची ऐसी सम्पदाओंकी आवश्यकता आ पड़ी है जो उन मोतियोंसे नहीं खरीदी जा
SR No.010816
Book TitleMere Katha Guru ka Kahna Hai Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy