SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाँचवाँ अध्याय [ ३३ गीत १७ जातियाँ हमने बनाई कर्म करनेके लिये ॥ हैं नहीं ये दूसरों का मान हरने के लिये ॥३८॥ ईशकी कृतियाँ नहीं ये प्रकृति की रचना नहीं । कल्पना बाज़ार की है पेट भरने के लिये ॥३९॥ जिस तरह सुविधा हमें हो उस तरह रचना करें। जाति जीनके लिये है है न मरने के लिये ॥४०॥ विप्रता की है ज़रूरत शूद्रताकी भी यहां प्रेमसे जग में मिलेंगे हम विचरने के लिये ॥४१॥ विप्रता का मद नहीं हो शूद्रता का दैन्य भी। हो परस्पर प्रेम यह संसार तरने के लिये ॥४२॥ हरि-गीतिका उममें रहे आसक्ति क्यों जिसका न कुछ जड़ मूल है । प्रासाद था जो एक दिन पर बन गया अब धूल है । जो फलसा कोमल कभी था पर बना अब शल है । अनुकूल था जो मूल में अब हो गया प्रतिकूल है ॥४३॥ अर्जुन- (ललित पद) माधव मेरा जाति-मोह अब है मरने को आया । पर बुझते दीपक समान है इसने जोर जनाया ॥ जाति-भेद प्राकृत मत मानो ईश्वरकृति न बताओ। पर निःसार मानलूँ कैसे इसकी युक्ति सिखाओ ॥४४॥
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy