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________________ पाँचवाँ अध्याय यदि ब्रह्म नहीं, तो मायाका भी हो सकता है भान नहीं ॥ विषमों में यदि समता न रहे सहयोग बने कैसे उनमें । कैस उनमें पूरकता हो दोनों हों अगर समान नहीं ॥ पद पाणि वक्ष सिर पीठ उदर इन विषमों में समता न रहे। तो हो मुर्दो का ढेर जगत हो जीवन का कलगान नहीं । समता में आर विषमता में मयादा और समन्वय हो । तो ही जीवन की वृद्धि यहां जड़ता का हो उत्थान नह। ।। गीत १५ निरर्थक भेद भाव दे छोड़। ' एक जाति है मानव जगमें सब से नाता जोड़ । ____निरर्थक भेदभाव दे छोड़ ॥२७॥ मैं हूँ गोरा तू है काला । मत कर भेद, न बन मतवाला। एकाकार मनुष्य जाति है उससे मत मुँह मोड़। निरर्थक भेदभाव दे छोड़ ॥२८॥ पशु पक्षी नाना कृत्तिवाले । पर सब मानव एक निराले ॥ इसीलिये मानव मानव में जातिभेद दे ताड़ । निरर्थक भेदभाव दे छोड़ ॥२०॥ विप्र कहाओ शूद्र कहाओ। अथवा क्षत्र वैश्य बनजाओ ।। हैं केवल जीविका-भेद ये दे अभिमान मरोड़ । निरर्थक भेदभाव दे छोड़ ॥३०॥
SR No.010814
Book TitleKrushna Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1995
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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