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________________ योग के प्रभाव से हड़प्रहारी महापापी से महाधर्मी बना भरत महाराजा का उदाहरण देना उचित है । परन्तु जिस जोव ने जन्मान्तर में दर्शनादि तीन रत्नों को प्राप्त नहीं किया और कर्मक्षय नहीं किया है, जिसने पूर्वजन्म में मनुष्यत्व प्राप्त नहीं किया, वह जीव अनन्तकाल तक एकत्रित किए हुए कर्मों का समूल नाश कैसे कर सकता है ? इसका उत्तर निम्नोक्त श्लोक द्वारा देते हैं :--- पूर्वमप्राप्तधर्माऽपि परमानन्दनन्दिता। योगप्रभावतः प्राप्ता मरुदेवी परं पदम् ॥११॥ अर्थ पहले किसी भी जन्म में धर्म-सम्पत्ति प्राप्त न करने पर भी योग के प्रभाव से परम आनन्द से मुदित (प्रसन्न) मरुदेवी माता ने परमपद मोक्ष प्राप्त किया है। व्याख्या श्रीमरुदेवी माता ने किसी भी जन्म में सद्धर्म प्राप्त नहीं किया था और न त्रसयोनि प्राप्त की थी और न मनुष्यत्व का ही अनुभव किया था। केवल मरुदेवी के भव में योगबल में समृद्ध शुक्लध्यान-रूपी महानल से दीर्घकाल संचित कर्मरूपी ईन्धन को जला कर भस्म कर दिया था। कहा भी है"जहा मरुदेवी अच्चंत पावरा सिद्धा' अर्थात् जैसे अकेली मरुदेवी ने दूसरी किसी गति में गए बिना व संसार-परिभ्रमण किये बिना सीधे अनन्तकालिक स्थावर (अनादि निगोद) पर्याय से निकल कर मोक्ष प्राप्त कर लिया । मरुदेवी का चरित्र संक्षेप में पहले कहा गया है। मरुदेवी माता ने पूर्वजन्म में तीव्र कर्म नहीं किये थे, इसलिये योग की थोड़ी-सी साधना से अनायास ही मोक्षपद प्राप्त कर लिया था । मगर जो अत्यन्त क्रूरकर्मी है, क्या वह भी योग के प्रभाव से सफलता प्राप्त कर सकता है ? इस प्रश्न का समाधान निम्नोक्त श्लोक द्वारा प्रस्तुत करते हैं ब्रह्म-स्त्री-भ्रूण-गो-घात-पातकान्नरकातिथेः । दृढ़प्रहारि-प्रभृतेर्योगो हस्तावलम्बनम् ॥१२॥ अर्थ ब्राह्मण, स्त्री, गर्भहत्या (बालहत्या) और गाय की हत्या के महापाप करने से नरक के अतिथि-समान वृढ़प्रहारी आदि को योग हो आलम्बन था। व्याख्या ब्राह्मण, नारी, गर्भस्थ बालक और गाय इन चारों की हत्या लोक में महापाप मानी जाती है । यद्यपि सभी आत्माएं समान मानने वाले के लिये ब्राह्मण हो या अब्राह्मण, स्त्री हो या पुरुष, गर्भस्थ बालक हो अथवा युवक, गाय हो या अन्य पशु, किसी भी पंचेन्द्रिय प्राणी की हत्या का पाप तो प्रायः समान ही होता है । कहा भी है कि-'किसी की भी हिसा नहीं करनी चाहिए, राजा हो या पानी भरने वाला नौकर।' अभयदानव्रती (अहिंसावतो) को किसी भी जीव की हिंसा नहीं करनी चाहिए। फिर भी लोकव्यवहार में ब्राह्मण, स्त्री, बालक और गाय इन चारों की हत्या करने वाला महापापी माना जाता है । दूसरे लोग अन्य जीवों का वध करने में उतना पाप नहीं मानते, जितना पाप इन चारों के वध में मानते हैं । इसलिये यहाँ पर इन चारों की हत्या को महापातक कहा है। ऐसे महापातक के फल
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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