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________________ योगशास्त्र: प्रथम प्रकाश ४६ स्वरूप नरकगमन के अधिकारी बने हुए हढ़ाहारी आदि को योगबल प्राप्त होने से वे उसी जन्म में मोक्ष के अधिकारी बन जाते हैं । इसी प्रकार दूसरे महापापी भी जिन्होंने जिनवचन को समझा है और उससे योगसम्पत्ति प्राप्त की है ; उन्होंने नरकगमन-योग्य कर्मों का निर्मूल करके परमपद-मोक्षसम्पति प्राप्त की है। कहा भी है--- 'कोई व्यक्ति स्वभाव से क्रूर हो गया हो. अत्यन्त विषयासक्त हो गया हो, किंतु अगर उसका चित्त जिनवचन के प्रति भक्तियुक्त हो जाय तो वह भी तीनों लोकों के सुख का भागी बन सकता है। दृढ़प्रहारी का हृदय-परिवर्तन किसी नगर में अत्यन्त उद्दण्ड स्वभाव का एक ब्राह्मण रहता था। वह इतना पापबुद्धि था वि. जब देखो, तभी निर्दोष जनता को हैरान करता था, उन पर जुल्म ढहाता था। राज्य-रक्षक उसे नगर से बाहर निकाल दिया। अत: बाजपक्षी जैसे शिकारी के हाथ में चला जाता है, वैसे ही वह चोरपल्ली में पहुंच गया । वहाँ चोरों के सेनापति (अगुआ) ने उसके निर्दय-व्यवहारों और हिमक आचरण में प्रभावित हो कर तथा उसे अपने काम के लिये योग्य समझ कर पुत्ररूप में स्वीकार कर लिया। एक दिन अकस्मात् किसी जगह मुठभेड़ में चोरों का सेनापति मारा गया । अतः उस कर युवक को उसका पुत्र समझ कर तथा पराक्रमी जान कर सेनापति की जगह स्वीकार कर लिया । वह यतापर्वक जीवहत्या करने में जरा भी संकोच एवं विलम्ब नहीं करता था। इस कारण लोगों में वह दृढ़प्रहारी नाम से प्रसिद्ध हो गया। एक दिन लूटपाट करने में साहमी कुष्ठ वीर सुभटों को माथ लेकर वह कुशस्थल नामक गांव को लूटने गया । उम गांव में देवशर्मा नाम का एक महादरिद्र ब्राह्मण रहता था। उमके बच्चों ने एक दिन फलरहित वृक्ष से फल की आशा रखने के समान अपने पिता के सामने खीर खाने की इच्छा प्रगट की। ब्राह्मण ने सारे गांव में घूम कर कहीं से चावल मांगा, कही से दूध और कहीं से खांड मांगी। यों खीर की सामग्री इकट्ठी करके घर में खीर बनाने को कह कर स्वयं नदी पर स्नान करने चला गया। इतने में वे ही चोर उसी के घर पर आ धमके। "दैव भी दुर्बल को ही मारता है," इस न्याय से उन चोरों में से एक चोर तैयार की हुई खीर को देख कर । प्रेत के समान लपक कर खीर की हडिया उठा कर ले भागा। अपने प्राण के समान खीर लुट जाने से ब्राह्मणपुत्रों ने अपने पिता से रोते-चिल्लाते हुए मारी शिकायत की.-"हम तो मुंह बाए हुए खीर खाने की इंतजार कर ही रहे थे, इतने में तो जैसे फटी हुई आँख वाले के काजल को वायु हरण कर लेता है, वैसे ही हमारे देखते-देखने एक चोर आ कर हमारी खीर उठा ले गया।" बच्चों की बात सुन कर क्रोधाग्नि में जलता हुआ ब्राह्मण एकदम अर्गला ले कर यमदूत-मा दौड़ा । आना मारा साहस और बल बटोर कर राक्षस की तरह अर्गला से वह चोरों पर टूट पड़ा और चोरों को घड़ाधड़ पीटने लगा । अपने साथी चोरों को पिटते देख कर हड़प्रहारी उसका सामना करने के लिए दौड़ा। जब वह दौड़ रहा था तब, देवयोग मे रास्ते में उसकी गति को रोकने के लिए एक गाय बीच में आ गई। मानों वह गाय उसके दुर्गातपथ को रोकने आई हो । अधम चोरों के इस अगुआ ने आव देखा न ताव, बेचारी गाय को कसाई के समान तलवार के एक ही झटके में मार डाली । दरिद्र ब्राह्मण, जो उक्त चोर से मुकाबला करने आया था, उमके मस्तक को भी तलवार के एक ही प्रहार से अनन्नास के पेड के समान काट कर जमीन पर गिरा दिया । उस समय उसकी गर्भवती पत्नी उसके सामने आकर चिल्ला उठी-"ओ निर्दय पापी यह क्या कर डाला तूने ?" परन्तु उसने उसकी एक न सुनी और जैसे भेड़िया गर्भवती बकरी पर महमा हमला कर सुधातर
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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