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________________ पंचभूवमंडलों पर से लाभहानि-विषयक निर्णय ___अर्थ-पहले ४ श्लोक में कहे अनुसार यदि वारुणमंडल से वामना पूर्ण बह रही हो तो उस समय प्रारम्भ किए गए कार्य अवश्यमेव सफल होते हैं। तया जय-जीवित-लाभादि कार्याणि निखिलान्यपि । निष्फलान्येव जायन्ते पवने दक्षिणास्थिते ॥२३॥ अर्थ-- यदि वारुणमण्डल के उदय में पवन दाहिनी नासिका में चल रहा हो तो विजय, जीवन, लाभ आदि समन्न कार्य निष्फल ही होते हैं । तथा - ज्ञानी बुध्वाऽनिलं सम्यक, पुष्पं हस्तात् प्रपातयेत् । मृत जीवित-विज्ञाने, ततः कुर्वीत निश्चयम् ॥२३२॥ अर्थ-जीवन और मृत्यु के विशेष ज्ञान की प्राप्ति के लिए मानीपुरुष वायुको भलीभांति जान कर अपने हाथ से पुष्प नीचे गिरा कर उसका निर्णय करते हैं। उसी निर्णय का नरीका बताते हैं त्वरितो वरुणे लाभः, चिरेण तु पुरन्दरे। जायते पवने स्वल्पः, सिद्धोऽप्यग्नो विनश्यति ॥२३३॥ अर्थ-प्रश्न के उत्तरदाता के यदि वरुणमण्डल का उदय हो तो उसका तत्काल लाभ होता है, पुरन्दर-(पृथ्वीमण्डल) का उदय होने पर देर से लाभ होता है, पवनमण्डल चलता हो तो साधारण लाभ होता है, और अग्निमण्डल चलता हो तो सिद्ध हुमा कार्य भी नष्ट हो जाता है। तथा आयाति वरुणे यातः, तत्रैवास्ते सुखं क्षितौ । प्रयाति पवनेऽन्यन, मत इत्यनले वदेत् ॥२३४॥ अर्थ- किसो गांव या देश गए हुए मनुष्य के लिए जिस समय प्रश्न किया जाए, उस समय वरुणमंडल चालू हो तो वह शीघ्र ही लौट कर आने वाला है, पुरन्दरमणल में प्रश्न करे तो वह जहाँ गया है, वहाँ सुखी है, पवनमंडल में प्रश्न करे तो वह वहाँ से अन्यत्र चला गया है, और अग्निमण्डल में प्रश्न करे तो कहे कि उसको मृत्यु हो गई है । तथा बहने पुखपृच्छायां, युद्ध भंगश्च वारुणः । मृत्युः सैन्यविनाशो वा पवने जायते पुनः ॥२३॥ अर्थ यदि अग्निमंग्ल में युद्धविषयक प्रश्न करे तो महाभयंकर युद्ध होगा और पराजय होगी, पवनमण्डल में प्रश्न करे तो जिसके लिए प्रश्न किया गया हो, उसको मृत्यु होगी और सेना का विनाश होगा। महेन्द्र विजयो युद्ध, वरुणे वांच्छिताधिकः । रिपुमंगेन सन्धिर्वा स्वा िपरिसूचकः ॥२३६॥ ____ अर्थ-महेनमंडल अर्थात् पृम्बीतत्त्व के चलते प्रश्न करे तो युद्ध में विजय होगी,
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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