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________________ ५५४ योगशास्त्र : पंचम प्रकाश बरुणमंडल में प्रश्न करे तो मनोरथ से अधिक लाभ होता है तथा शत्र का मानभंग हो कर अपनी सिद्धि को सूचित करने वाली संधि होगी। तथा भौमे वर्षति पर्जन्यो, वरुणे तु मनोमतम् । पवने दुदिनाम्भोदो, वह्नौ वृष्टिः कियत्यपि । २३७॥ अर्थ- यदि पृथ्वीमण्डल में वर्षा-सम्बन्धी प्रश्न किया जाए तो वर्षा होगी, वरुणमण्डल में प्रश्न करे तो आशा से अधिक वर्षा होगी, पवनमंडल में प्रश्न करे तो दुर्दिन व बादल होंगे, परन्तु वर्षा नहीं होगी और अग्निमडल में प्रश्न करे तो मामूली वर्षा होगी। वरुणे सस्यनिष्पत्तिः, अतिश्लाघ्या पुरन्दरे । मध्यस्था पवने च स्यात्, न स्वल्पाऽपि हुताशने ॥२३॥ अर्थ-धान्य-उत्पत्ति के विषय में वरुणमंडल में प्रश्न करे तो पान्य की उत्पत्ति होगी, पुरन्दरमंडल में प्रश्न करे तो बहुत अधिक धान्य-उत्पत्ति होगी, पवनमण्डल में प्रश्न करे तो मध्यम ढंग की धान्योत्पत्ति होगी; कहीं होगी और कहीं नहीं होगी और अग्निमंडल में प्रश्न करे तो धान्य जरा भी उत्पन्न नहीं होगा। महेन्द्रवरुणौ शस्ती, गर्भप्रश्ने सुतप्रदौ । समीरवहनौ स्त्रीदौ, शून्यं गर्भस्य नाशकम् ॥२३९॥ अर्थ-गर्मसम्बन्धी प्रश्न में महेन्द्र और वरुणमण्डल श्रेष्ठ हैं, इनमें प्रश्न करे तो पुत्र की प्राप्ति होती है, वायु और अग्निमण्डल में प्रश्न करने पर पुत्री का जन्म होता है और सुषुम्णानाड़ी में प्रश्न करे तो गर्भ का नाश होता है । तथा गहे राजकूलादौ च, प्रवेशे निर्गमेऽथवा। पूर्णागपावं पुरतः, कुर्वतः स्यावभीप्सितम् ॥२४०॥ अर्थ-घर में या राजकुल आदि में प्रवेश करते या बाहर निकलते समय जिस मोर की नासिका के छिद्र से वायु चलता हो; उस तरफ के पैर को प्रथम आगे रख कर चलने से इष्ट कार्य की सिद्धि होती है । तथा गुरु-बन्धु-नपामात्याः अन्येऽपीप्सितदायिनः । पूर्णागे खलु कर्तव्याः, कार्यासमिभीप्सता ॥२४१॥ अर्थ-कार्य-सिद्धि के अभिलाषी को गुरु, बन्धु, राजा, प्रधान या अन्य लोगों को, जिनसे इष्ट वस्तु प्राप्त करनी है, अपने पूर्णाग की और अर्थात् नासिका के जिस छिद्र में बायुचलता हो, उस ओर उन्हें रख कर स्वयं बैठना चाहिए। इससे कार्य की सिद्धि होती है। आसने शयने वापि, पूर्णागे विनिवेशिताः। वशीभवन्ति कामिन्यो, न कार्मणमतः परम् ॥२४२॥ अर्थ-मासन (बैठने) और शयन (सोने) के समय में भी जिस मोर की नासिका से
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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