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________________ इडा, पिंगला बौर सुषुम्णा नाड़ी में वायु के प्रवेश-निर्गमन का फल ५२७ करने वाली और कार्य का विघात करने वाली होती है एवं सुषुम्ना नाड़ी अणिमावि अष्ट महासिद्धियों का और मोक्षफल का कारण रूप होती है। भावार्थ:- कहने का तात्पर्य यह है कि सुषुम्णानाड़ी में ध्यान करने से थोड़े समय में ध्यान में एकाग्रता हो जाती है और लम्बे समय तक ध्यान की परम्परा चालू रहती है । इस कारण इससे थोड़े समय में अधिक कर्मों का नाश होता है। अतः इसमें मोम का स्थान रहा हुआ है । इसके अतिरित. सुपुम्णा नाड़ी मे वायु की गति बहुत मन्द होती है। अतः मन सरलता से स्थिर हो जाता है। मन और पवन की स्थिरता होने पर संयम की साधना में भी सरलता होती है । धारणा, ध्यान और समाधि को एक ही स्थल पर करना संयम है, और ऐसा संयम ही सिद्धियों का कारण है। इस कारण सुषुम्णानाड़ी को मोक्ष और सिद्धियों का कारण बताया है।" बांयी और दाहिनी नाड़ी चलती हो, तब कौन-सा कार्य करना चाहिए, उसे अब बताते हैं वामवाभ्युदयादीष्टशस्तकार्येषु सम्मता। दक्षिणा तु रताहार-युद्धादौ दोप्तकर्मणि ॥६॥ अर्थ-यात्रा, दान, विवाह, नवीन वस्त्राभूषण धारण करते समय, गाँव, नगर व घर में प्रवेश करते समय, स्वजन-मिलन, शान्तिकम, पौष्टिक कम, योगाभ्यास, राजदर्शन, चिकित्सा, मैत्री, बीज-वपन इत्यादि अभ्युदय और ईष्टकार्यों के प्रारम्भ में बांयी नाड़ो शुभ होती है, और भोजन, विग्रह, विषय-प्रसग, युद्ध, मन्त्र-साधना, दीक्षा, सेवाकर्म, व्यापार, औषध, भूतप्रेतावि-साधनों आदि तथा अन्य रौद्र कार्यों में सूर्यनारोबाहिनी नारी शुभ मानी गई है। अब फिर बांयी और दाहिनी नाड़ी का विषम विभाग कहते हैं वामा शस्तोवये पक्षे, सिते कृष्णे तु बक्षिणा। त्रीणि त्रीणि दिनानीन्दु-सूर्ययोरुदयः शुभः ॥६५॥ अर्थ-शुक्लपक्ष में सूर्योदय के समय बांयी नाड़ी का उदय श्रेष्ठ माना गया है और कृष्णपक्ष में सूर्योदय के समय बाहिनी नाड़ी का उदय शुभ माना गया है। इन दोनों नाड़ियों का उदय तीन दिन तक शुभ माना जाता है। आगे इस सम्बन्ध में अधिक स्पष्टता की जायगी। उदय का नियम कह कर अब अस्त का नियम कहते हैं शंशाकेनोदयो वायोः, सूर्येणास्तं शुभावहम् । उदये रविणा त्वस्य, शशिनाऽस्तं शिव मतम् ॥६६॥ अर्थ जिस दिन सूर्योदय के समय वायु का उदय बनस्वर में हमा हो और सूर्य स्वर में अस्त होता हो तो वह दिन शुभ है। यदि उस दिन सूर्यस्वर में उदय और चन्नास्वर में अस्त हो, तब भी कल्याणकारी माना जाता है।' इसी बात का स्पष्टीकरण तीन श्लोकों द्वारा करते हैं
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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