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________________ ५२६ योगशास्त्र:पंचम प्रकाश प्रवेश और निगम में शुभ-अशुभ होने के कारण बताते हैं प्रवेश-समये वायु वमृत्यस्तु निर्गमे । उच्यते शानिभिस्तापलमप्यनयोस्ततः । ५८॥ अर्थ-वायु जब मंडल में प्रवेश करता है, तब उसे जीव कहते हैं और जब वह मंडल से बाहर निकलता है, तब उसे मृत्यु कहते हैं। इसी कारण मानियों ने प्रवेश करते समय का फल शुभ और निकलते समय का फल अशुभ बताया। अर्थात्-पूरक वायु नासिका के अन्दर प्रवेश करता हो और कोई प्रश्न करे तो वह कार्य सिद्ध होगा, और रेचक वायु मंडल से बाहर निकलता हो और कोई प्रश्न करे तो वह कार्य सिद्ध नहीं होगा।' अब नाड़ी के भेद से वायु का शुभ, अशुभ और मध्यम फल दो श्लोकों से कहते हैं-- पयेन्दोरिन्द्रवरुणौ, विशन्तो सर्वसिद्धियो । रविमार्गेण निर्यान्तौ, प्रविशन्तो च मध्यमो ॥५९।। बक्षिणेन विनिर्यान्ती, विनाशायानिलानलो। नि.सरन्तो विशन्तौ च मध्यमा वितरेण तु ॥६०। अर्थ-चन्द्र अर्थात् बांयी नासिका से प्रवेश करते हुए पुरन्दर और वरुण वाय सर्वसिद्धियां प्रदान करते हैं, जबकि ये ही दोनों दाहिनी ओर से निकलते हुए विनाशकर होते हैं। और सूर्य अर्थात् बाहिनी नाड़ो से बाहर निकलते और प्रवेश करते हुए ये दोनों वायु मध्यमफल देते हैं। अब नाड़ियों के लक्षण कहते हैं इडा च पिंगला चव सुषुम्णा चेति नाडिकाः । शशि-सूर्य-शिवस्थानं, वाम-दक्षिण-मध्यगाः ॥६१॥ अर्थ-बायो मोर को नाड़ी इड़ा कहलाती है, और उसमें चन्द्र का स्था. है, दाहिनी ओर को नाड़ी पिंगला है; उसमें सूर्य का स्थान है, और दोनों के मध्य में स्थित नाडी सुषम्मा है, इसमें मोम-स्थान माना है। इन तीनों में वायु-संचार का फल दो श्लोकों द्वारा कहते हैं पीयूषमिव वर्षन्ती, सर्वगात्रेषु सर्वदा । वामाऽमृतमयो नाडी सम्मताऽभीष्टसूचिका ॥२॥ वहन्त्यनिष्टशंसित्री, संही बक्षिणा पुनः । सुषुम्णा तु भवेत् सिद्धि-निर्वाणफलकारणम् ॥६३॥ अर्थ-शरीर के समस्त भागों में निरंतर अमृत वर्वा करने वाली, और सभी मनोरयों को सूचित करने वाली बांयी नाड़ी मानी गई है, तथा दाहिनी नाड़ी अनिष्ट को सूचित
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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