SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 544
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२८ योगशास्त्र : पंचम प्रकाश सितपक्षे दिनारम्भे यत्नतः प्रतिपद्दिने । वायोर्वीक्षेत संचारं प्रशस्तमितरं तथा ॥६७॥ उदेति पवनः पूर्व, शशिन्येष व्यहं ततः । संक्रामति व्यहं सूर्ये, शशिन्येव पुनस्त्र्यहम् ॥६॥ वहेद् यावद् बृहन्पूर्वक्रमेणानेन मारुतः। कृष्णपक्षे पुनः सूर्योदयपूर्वमयं कमः ॥६६॥ अर्थ- शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के प्रारम्भ में वायु के संचार को यत्नपूर्वक देख लेना चाहिए कि वह प्रशस्त है या अप्रशस्त ? प्रथम तीन दिन, (१, २, ३, के दिन) सूर्योदय के समय चन्द्रनाड़ी चलती है। उसके बाद ४, ५, ६, के दिन (तीन दिन) सूर्योदय के समय सूर्यनाड़ी बहती है। तदनन्तर फिर ७, ८. E के दिन चन्द्रनाड़ी, १०, ११,१२, के दिन सूर्यनाड़ी और १३, १४, १५, के दिन चंद्रनाड़ी में पवन बहता है, और कृष्णपक्ष में प्रथम तीन दिन (१, २, ३) सूर्यनाड़ी, फिर ४, ५, ६, के दिन चन्द्र नाड़ी में, इसी क्रम से तीन तीन दिन के क्रम से अमावस्या तक बहेगा। चाय का यह क्रम सारे दिन के लिए नहीं है, परन्तु केवल सूर्य-उदय के समय के लिए है। उसके बाद ढाई ढाई घंटे में चन्द्रनाड़ी और सूयनाड़ी बदलती रहती है। इस नियम में रद्दोबदल होने पर उसका फल अशुभ या दुःखफलसूचक है। इस क्रम में गड़बड़ी हो तो, उसका फल दो श्लोकों द्वारा बताते हैं तीन पक्षानन्यथात्वेऽस्ति, मासषट्केन पंचता। पक्षद्वयं विपर्यासेऽभीष्ट-बन्धुविपद् भवेत् ॥७०॥ भवेत् तु दारुणा, व्याधिरेकपन विपर्यये । व्याच विपर्यासे, कलहादिकमुद्विशेत् ॥७१॥७१॥ अर्थ-पूर्वकथित चन्द्र या सूर्यनाड़ी के क्रम से विपर्यास-विपरीत तीन पक्ष तक पवन बहता हो तो छह महीने में मृत्यु हो जाती है। यदि पक्ष तक विपरीत क्रम होता रहे तो स्नेही-बन्धु पर विपत्ति आती है; एक पक्ष तक विपरीत पवन चले तो भयंकर व्याधि उत्पन्न होती है और यदि दो-तीन-दिन विपरीत वायु चले तो कलह आदि अनिष्ट फल खड़ा होता है। तया एक वीण्यहोरात्रायर्क एव मरुद वहन् । वर्षस्विभिर्वाभ्यामेकेनान्तायेन्दो रूजे पुनः ॥७२॥ अर्थ-यदि पूरे दिन-रात भर सूर्यनाड़ी में हो पवन चलता रहे तो तीन वर्ष में मृत्यु होती है, इसी तरह दो-दिन-रात तक वायु चले तो दो वर्ष में मृत्यु होती है और तीन
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy