SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 512
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६६ योगशास्त्र : चतुर्थ प्रकाश चारों दिशा में लक्षप्रमाण वाले पूर्व में वडवामुख, दक्षिण में केयूप, पश्चिम में यूप और उत्तर में ईश्वर नामक हजार योजन वज्रमय मोटाई वाला तथा दस हजार योजन के मुख तथा तल से युक्त; काल, महाकाल, वेलम्ब और प्रभंजन देवों के आवास वाला, महान गहरा, खड्डे के समान, वायु धारण करने वाला तीन भाग जल वाला पातालकलश है, दूसरे छोटे कलश हजार योजन के नीचे और मुख सो योजन, दस योजन मोटाई वाले; जिनमें ३३३३ ऊपर के भाग में जल, मध्य में वायु और जल और नीचे वायु होता है। जम्बूद्वीप में प्रवेश करते हुए जल के ज्वार को रोकने के लिए ७८८४ देव तथा अर्न्तज्वार रोकने के लिए ४२००० नागकुमार देव और बाह्यज्वार रोकने के लिए ७२००० देव और ज्वारशिखा को रोकने के लिए ६०००० देव होते हैं । गोस्तूप, उदकाभास, शंख और दकसीम नामक चार वेलंघर देव के आवासपर्वत हैं. सुवर्ण, अंकरत्न, चांदी और स्फटिकमय गोस्तूप शिवक, शंख तथा मनःशिल नाम के बावास अधिपतिदेव के हैं, इनकी ऊंचाई १७२१ योजन नीचे, १०२२ योजन विस्तार वाला, ऊपर ४२४ योजन विस्तार वाला है। उनके ऊपर प्रासाद है । कर्कोटक, कर्दम, कैलाश और अरूणप्रभ नाम के उनके अधिपति हैं । कर्कोटक, विद्यतु जिह्वा कैलास और अरूणप्रभ नामक बावास वाले अल्प ज्वार रोकने वाले सर्वरत्नमयपर्वत हैं, तथा विदिशाओं में बारह हजार योजन लम्बा चौड़ा चन्द्रद्वीप है और उतना ही लम्बा चौड़ा सूर्यद्वीप है, तथा गौतमद्वीप और सुस्थित आवास भी उतने ही प्रमाण वाला है, और अन्तर एवं बाह्य लवणसमुद्र के चन्द्र और सूर्य-सम्बन्धी द्वीप है और सर्वक्षत्र में प्रासाद है, तथा लवणसमुद्र में लवण रस है । लवणसमुद्र के चारों तरफ गोलाकार और इससे दुगुना अर्थात् चार लाख प्रमाण वाला धातकीखंड है । मेरू और दूसरे वर्षधरपर्वत तथा क्षेत्र जम्बूद्वीप में कहे हैं, उनसे दुगुने घातकीखंड में जानना, दक्षिण और उत्तर में दा लम्बे इषुकार पर्वत होने से धातकीखण्ड के दो भाग हो गए हैं। जम्बूद्वीप के पर्वतादि के नाम और संख्या, पूर्वाद्ध और पश्चिमाघं चक्र के आरे के समान ही घातकीखण्ड में स्थित हैं। जम्बूद्वीप के निषधादि पर्वत की ऊंचाई वाले कालोदधि और लवणसमुद्र के जल को स्पर्श करने बाले ईषुकार पर्वत सहित क्षेत्र आरे के मध्यभाग मे रहे हैं । धातकीखंड के चारों तरफ गोलाकार आठ लाख लम्बा कालोदधिसमुद्र है । कालोदधिसमुद्र के चारों तरफ गोलाकार, इससे दुगुना विस्तृत पुष्करवरद्वीप है । उसके आधे विभाग में मनुष्यक्षेत्र है, धातकीखण्ड में मेरु तथा इषुकार पर्वत आदि की जितनी संख्या है, पुष्करवरार्ध में क्षेत्र, पर्वत आदि की जानना । धातकीखण्ड के क्षेत्रादि से दुगुना क्षेत्रादि है । घातकीखण्ड और पुष्करार्ध के चार छोटे मेरु हैं, वे महामेरु से पंद्रह हजार योजन कम ऊंचाई वाले अर्थात् ८५००० योजन के हैं तथा पृथ्वीतल में छहसौ योजन कम विष्कंभ वाला है; यह प्रथम कांड है । दूसरा कांड बड़े मेरु के समान है । तीसरा कांड सात हजार योजन कम अर्थात् ५६ हजार योजन है । बाठ हजार योजन कम अर्थात् २८ हजार भद्रशीलवन है, नंदनवन बड़े मेरुपर्वत के समान है, साढ़े पचपन हजार ऊपर पांचसौ योजन विस्तार वाला सौमनसवन है, उसके बाद २५ हजार योजन ऊपर ४९४ योजन विस्तार वाला पांडुकवन है । ऊपर-नीचे का विष्कंभ और अवगाह बड़े मेरु के समान तथा चूलिका भी उसी तरह है। इस तरह ढाई द्वीप और समुद्रों से युक्त यह मनुष्यक्षत्र कहलाता है, इसमें पांच मेरु, पैंतीस क्षेत्र, तीस वर्षधरपर्वत, पांच देवकुरु, पांच उत्तरकुरु और एकसी आठ विजय हैं। जैसे महानगर की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर किला होता है, उसी तरह पुष्करद्वीपा
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy