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________________ योगशास्त्र : चतुर्थ प्रकाश जम्बूद्वीप के मध्यभाग में मेरुपर्वत सोने की थाली के समान एक हजार योजन नीचे पृथ्वी के अन्दर छुपा हुआ है। यह ६६ हजार योजन ऊँचा है, मूल में १००१ ६ विस्तृत है। धरतीनल में दस हजार योजन विस्तार वाला, ऊपर हजार योजन चोड़ा, तीन कांड विभाग वाला है । यह अधोलोक में १०० योजन, तिरछालोक में १५०० योजन और ऊर्ध्वलोक में ६८१०० योजन है । इस तरह मेरुपर्वत तीनों लोक को विभक्त करता है । इसमें भद्रशाल, नंदन, सोमनम और पांडुक नाम के चार वन हैं; जिनमे प्राय: शुद्ध पृथ्वी, पाषाण, बज्र, पत्थरों से परिपूर्ण एक हजार योजन-प्रमाण वाला प्रथम काण्ड है। चांदी, सोना, अंकरत्न और स्फटिकरत्न की प्रचुरता से युक्त ६३ हजार योजन वाला दूसरा कांड है, छत्तीस हजार योजन वाला स्वर्णबाहुम तीमरा कांड है। वैडूर्यरत्न की अधिकता से युक्त चालीग योजन ऊंत्री उसकी चूलिका है, वह मूल में बारह योजन लम्बी, मध्य में आठ योजन, और ऊपर चार योजन लम्बी है । मेरुपर्वत के प्रारंभ ग महलटी में वलयकार मद्रशाल वन है, भद्रशाल वन से पाच सौ योजन ऊपर जाने के बाद पांचसौ योजन विस्तृत प्रथम मेखला में वलयाकार नन्दनवन है । उसके बाद साढ़े बासठ हजार योजन ऊपर जाने के बाद दूसरी मेखला में पांच सौ योजन विस्तृत वलयाकार सोमनस्वन है। उसके वाद छत्तीस हजार योजन जाने पर तीसरी मेखला मेरुपर्वत के शिखर पर ६४ योजन विस्तृत वलयाकृति-युक्त पांडुकवन है । YEY इस जम्बूद्वीप में सात क्षेत्र हैं । उसमें दक्षिण की ओर भरतक्षेत्र है, उत्तर में हैमवन क्षेत्र है, उसके बाद हरिवर्षक्षेत्र है; बाद में महाविदेह है, उसके बाद रम्यकक्षेत्र है, उसके बाद हैरण्यवतक्षेत्र है, बाद में ऐरावतक्षेत्र है । प्रत्येक क्षेत्र को पृथक करने वाले हिमवान, महाहिमवान, निपध, नील, रुक्मी, और शिखरी नाम के पर्वत है । वे क्रमशः हेम, अर्जुन, तपनीय, स्वर्ण, बंडूर्य, चांदी और तपनीय मय विचित्र मणिरत्नों से सुशोभित, मूल और ऊपर के भाग में समान विस्तार वाले है । हिमवान् पवंत पचीस योजन जमीन में और सौ योजन ऊचा है, महाहिमवान् उससे दुगुना अर्थात् दो सौ योजन ऊंचा है । निषधपर्वत चारसौ योजन ऊंचा है, नीलपर्वत उतना ही चार सौ योजन ऊंचा, रुक्मी महाहिमवान् जितना और शिखरी हिमवान् के जितना ऊंचा है। इन पर्वतों पर पद्म, महापद्म तिगिच्छ, कशरी, महापुण्डरीक और पुंडरीक नाम के क्रमश: सान सरोवर है। प्रथम सरोवर एक हजार योजन लम्बा और पांच सौ योजन चौड़ा है दूसरा इससे दुगुना, और तीसरा दगसे भी दुगुना है। उत्तर में पुण्डी आदि सरोवर दक्षिण के सरोवरों के समान हैं। प्रत्येक सरोवर में दस योजन की अवगाहना वाला पद्मकमल है, और जिस पर क्रमशः श्रीदेवी ह्रीदेवी, धृतिदेवी, कोर्निदेवी, बुद्धिदेवी और लक्ष्मीदेवी निवास करती देवपषंदा के देवता तथा आत्मरक्षक | उनका आयुष्य एक पल्योपम का होता है तथा वे सामानिक देवों से युक्त होती हैं । इम भरत क्षेत्र में गंगा और मिन्धु नाम की दो बडी नदियां हैं, हैमवतक्षेत्र में रोहिताशा और रोहिता, हरिवर्षक्षेत्र में हरिकान्ता और हरिता महाविदेह में शीता ओर शीतोदा ; रम्यक्क्षेत्र में नारी और नरकान्ता, हैरण्यवत में सूवर्णकूला और रूप्यकूला, और ऐरवतक्षेत्र में रहा और रक्तोदा नाम की नदियाँ हैं । इसमें प्रथम नदी पूर्व में और दूसरी नदी पश्चिम में बहती है । गंगा और मिन्धु नदी के साथ कुल चौदह हजार नदियों का परिवार है । अर्थात् दोनों में चौदह चौदह हजार नदियाँ मिलती हैं। रोहिताशा और रोहिता में अट्ठाईस हजार नदियाँ, हरिकान्ता और हरिण में छपन हजार नदियाँ, शीता और शीतोदा में पांच लाख बत्तीसहजार नदियाँ मिलती हैं। उत्तर की नदियों का परिवार
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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