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________________ योगशास्त्र : चतुर्व प्रकार नील, कापोत, तेजस, पद्म, और शुक्ल नाम की ये हमेश्याएं जो कर्मबन्ध की स्थिति को उसी तरह सुदृढ़ कर देती है, जिस तरह चित्रकर्म में सरेस रंग को स्थायी व पक्का बना देता है।" इस तरह पूर्वोक्त छह लेश्याएं बात्मा के परिणामरूप होने से बशुद्धतमा, अमुखतरा, अशुद्धा, शुद्धा शुद्धतरा, और सुद्धतमा कहलाती है। लेण्याजों का स्वरूप समझाने के लिए जामुन के पेड़ का तथा प्रामघातक का इष्टान्त विस्तृतरूप से दिया जाता है। अतः इस विषय को समझाने वाली आगमोक्त गापाबों का भावार्य वहाँ प्रस्तुत कर रहे है-“एक जंगल में छह पुरुषों ने एक जामुन का पेड़ देखा, जो पके हुए फलों से परिपूर्ण था, और उसकी गलियां मार से नमी हुई थीं। पेड़ को ऐसी हालत में देख कर सभी ने जामुन . पाने की अपनी-अपनी इच्छा प्रगट की और कहने लगे-"जामुन कैसे खाएं ?' उनमें से एक ने कहा"इस पेड़ पर चढ़ना तो बहुत मुश्किल है, जान का खतरा है। इसलिए इसे जड़ से ही काट दिया जाय, ताकि निश्चिन्त होकर जामुन खा सकें।" दूसरे ने कहा-"बजी । इतने बड़े पेड़ को काटने से क्या फायदा होगा? हमें फल ही खाने हैं, तो सिर्फ इस पेड़ की बड़ी-बड़ी हालियां काट कर नीचे गिरा लें, और फिर खाएं।" तीसरे ने कहा हमारा काम तो छोटी डालियां काट लेने से ही चल जायगा, फिर बड़ी डालियां काटने से क्या मतलब ?' चौथे ने कहा-"अजी ! फल के गुच्छ-गुच्छे तोड़ लेने से ही हमारा काम बन जायगा।' पांचवें ने कहा - "हमें तो सिर्फ पके हुए खाने लायक फलों को ही तोड़ लेना चाहिए ।' सबसे अन्त में छठे ने कहा- 'हमें पेड़ से फल तोड़ने की क्या आवश्यकता है ? जितने फल बाने हैं, उतने तो पेड़ के नीचे गिरे पड़े हैं, उन्हें ही ले कर खा लें।" इस दृष्टान्त का उपनय करते हुए कहते हैं-जिसने पेड़ को जड़ से काटने को कहा था, वह कृष्णलेश्यावाला है; जिसने बड़ी शाखाबों के काटने को कहा था, वह नीललेण्या वाला है; जिसने छोटी टहनियां काटने का कहा था, वह कापोतमेल्या वाला है ; जिसने गुच्छे-गुच्छे तोड़ लेने को कहा था, वह तेजोलेश्या वाला है ; जिसने सिर्फ पके फल तोड़ने का कहा था, वह पद्मलेश्यावान् है और जिसने पेड़ से टूट कर अपने आप धरती पर पड़े हुए फलों को लेने को कहा था ; वह शुक्ललेश्यावाला है। इसे एक दूसरे दृष्टान्त द्वारा समझाते है-"एक बार छह लुटेरे किसी गांव को लूटने के लिए चले । उनमें से एक लुटेरे ने कहा-"गांव में दो पैर वाले या चार पैर वाले जो भी प्राणी मिलें, सबको मार डालो।" सरे ने कहा-"चार पर वाले परबों को क्यों मारा जाय, सिर्फ दो पर वाले गों को मारना चाहिए।" तीसरे ने कहा-'बजी, स्त्रियों को क्यों मारा जाय ! सिर्फ पुरुषों को ही मार डाला जाय !" चौथे ने कहा-"सभी पुरुषों को न मार कर जिनके पास हथियार हों, उन्हें ही मार डाला जाय !" पांचवें ने कहा-बजी ! हमें तो उसको मारना चाहिए; जो हमारे सामने बा कर लाई करे ! तब छठे ने कहा-"छोडो मारने की बात को! हमें तो केवल धन ले लेना चाहिए।' इसका उपसंहार यों हैं-जो सभी को मारने का कहता था, वह कृष्णलेश्या के परिणाम बाला था: जो मनुष्यों का मारने का कहता था, वह नीललेश्यावान् जो केवल पुरुषों को मारने का कहता था, वह कापोतलेश्यायुक्त, जो केवल शस्त्र-अस्त्रवालों को मारने का कहता था, वह तेजोलेश्यावान्, जो सामने मा कर लड़ने वाले को मारने का कहता था, वह पद्मलेण्यावान् एवं जो केवल धन ले लेने की बात कहता था, वह शुक्ललेश्यावाला के परिणामों से युक्त था। इन छहों लेश्याओं में प्रथम तीन लेश्याएं अप्रशस्त (बराब) हैं और अन्तिम तीन लेश्याएं प्रशस्त (बच्छी) है। जब जब बात्मा विशुद्ध, विशुद्धतर होता जाता है, तब तब लेश्याएं बदलती रहती हैं। मृत्यु के समय जिस लेश्या के परिणाम होते हैं, बहुसार ही जीव को गति प्राप्त होती है । इसीलिए भगवान ने कहा-'बल्नेसे मरा तल्लेसे उबबन्याई'
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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