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________________ *BE योगशास्त्र : चतुर्थ प्रकाश शरीर के रूप का मद करेगा ? सनत्कुमार चक्रवर्ती का रूप कितना सुन्दर था ? थोड़े ही समय में उसके रूप की सुन्दरता नष्ट हो गई। ऐसा विचार करके कौन ऐना पुरुष होगा ; जो स्वप्न में भी रूप का मद व रंगा ? श्री ऋषभदेव भगवान् और श्रीमहावीरस्वामी के तप की पराकाष्ठा सुन कर अपने अत्यन्त अल्पतप का कौन अभिमान करेगा ? जिस तपस्या से एकसाथ कर्म-समूह टूट सकते हैं, उसका अभिमान करने से तो उलटे कर्म-समूह वढ़ जाते हैं । दूसरों के द्वारा रचित शास्त्रों का अभ्यास करके अपनी अल्पबुद्धि के प्रयास से ग्रन्थ तैयार करके अपने में उसको ले कर सर्वजना का अभिमान करने वाला तो अपने ही अंगों का भक्षण करता है। श्री गणधर भगवान् में द्वादशांगी के निर्माण करने और स्मरण करने की शक्ति थी; उसे जान क न ब्रद्धिमान पुरुष श्रुत का अभिमान करेगा ? कोई नही कितने ही आचार्य ऐश्वर्यमद और पद के स्थान पर वल्लभनामद और बुद्धिमद कहते हैं । उन्ने सम्बन्ध में इस प्रकार उपदेश देते है दरिद्र पुरुष उपकार के भार के नीच दब कर बुरे काम वरके दूसरे मनुष्यों की वल्लभता ( प्रियता ) प्ररता है ; भला, वह उसका मद कैसे कर सकता है ? जोकी में मिली हुई वल्लभता को पर गर्व करता है, यह वल्लभता चली जाने पर शोवरमुद्र जाता है । वुद्धि के विविश्व अग, उफ बढाने की विधि, उसके विकल्प तथा उसके अन का न्यूनाधिकता एव नरमता देखने हुए पदस्थानपतित के भेद से अनन्तगुनी बुद्धि के धनी द्वारा सूत्र का अर्थ ग्रहण करने-कराने, नवीन रचना करने अर्थ पर चिन्तन एवं उसका अवधारण करने आदि विषयो में प्राचीनकालिक महापुरुष मित्रत् अनन्तविज्ञानातिशययुक्त होते थे; यह जान कर इस काल का अल्पबुद्धि पुरुष अपनी बुद्धि का अहकार कैसे कर सकता है ?" इस प्रकार मान का स्वरूप एवं उसके भेदों का प्रतिपादन किया। अब मान के प्रतिपक्षभूत मादव (जो मान पर विजय प्राप्त करने का उपाय है) का उपदेश देते हैं उत्सर्पयन् दोषशाखा गुणमूलान्यधो नयन् । उन्मूलनीयो मान्द्र स्तन्मार्दव - सरित्प्लवैः ॥ १४ ॥ अर्थ - दोष रूपी शाखाओं को विस्तृत करने वाले और गुणरूपी मूल को नीचे ले जाने वाले मानरूपी वृक्ष को मादंव नम्रतारूपी नदी के वेग से जड़सहित उखाड़ फेंकना चाहिए । व्याख्या - मान को वृक्ष की उपमा दे कर दोनों की यहाँ तुलना की गई है । मानी पुरुष के दोष वृक्षशाखा के समान ऊंचाई में फैलते है । वे दोष शाखाएं हैं और गुण मूल है, जो ऊपर फैलने के बजाय नीचे जाना है । अर्थात् दोषों का समूह बढ़ता जाता है. और गुणों का समूह घटता जाता है। ऐसे मानवृक्ष को कैसे उखाड़ा जाय ? इम सम्बन्ध में कहते हैं - 'मादंव नम्रनारूपी लगातार बहने वाली नदी की तेज धारा (वेग) के द्वारा मानवृक्ष को उखाडना चाहिए ज्यों-ज्यों मदवृक्ष बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों गुणरूपी मूल छुप जाते हैं और दोषरूपी शाखाएं बढ़ती जाती हैं; जिन्हें कुल्हाड़े आदि से उखाड़ना अशक्य है ; उसे तो नम्रना भावनारूपी नदी के तीव्र जलप्रवाह से ही ममूल उखाड़ी जा मकती हैं। उससे ही उखाडना चाहिए । !
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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