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________________ मानकषाय और उसके कुफल व्याख्या - मान गुरुजन आदि बड़े लोगों के प्रति उपचाररूप विनय, श्रुत अर्थात् विद्या, शील अर्थात् सुन्दर स्वभाव का घातक है। जाति आदि के मद में पिशाच-सम अभिमानी बन कर व्यक्ति गुरु आदि का विनय नहीं करता। गुरु की सेवा नहीं करने से अविनयी विद्या प्राप्त नहीं कर सकता इसके कारण सभी लोगों की अवज्ञा करने वाला अपना दुःस्वभाव प्रगट करता है । मान केवल विनयादि का हो घातक नहीं है, बल्कि धर्म, अर्थ और कामरूपी त्रिवर्ग का भी घातक है । अभिमानी व्यक्ति इन्द्रियों को वश नहीं कर सकता; इससे उसमें धर्म कैसे हो सकता है ? मानी मनुष्य अक्खड़पन के कारण राजादि की सेवा में परायण नही होने से अर्थ की प्राप्ति कैसे कर सकता है ? काम की प्राप्ति भी व्यक्ति मृदुता होने पर ही कर सकता है। ठूठ के समान अभिमान मे अक्कड़ बना हुआ कामपुरुपार्थ केस सिद्ध कर सकता है ? जो व्यक्ति पहले देखता था; और उसे बाद में मानकषाय अन्धा बना देता है। वह किसको? मनुष्य को । क्या करता है ? कृत्य-अकृत्य चिन्तनरूप विवेक-लोचन का लोप कर देता है । 'एक तो निर्मल चक्षु वह सहज विवेक होता है।' इस वचन से विवेक ही नेत्र कहलाता है। ज्ञान-वृद्धों की सेवा नहीं करने वाला मानी अपने विवेक-लोचन का अवश्य लोप (नाश करता है। अतः मान अन्धत्व पैदा करता है। यह महज ही समझी जाने जमी बात है।' अव मान के भेद बता कर उसके फल कहते हैं जाति-लाभ-कुलेश्वर्य-बल-रूप-तपःश्रुतैः । कुर्वन् मदं पुनस्तानि, होनानि लभते जनः॥१३॥ अर्थ-जो व्यक्ति जाति, लाभ, कुल, ऐश्वर्य, बल, रूप, तप और जान; इन मद के आठ स्थानों (कारणों) में जिस किसी का मद करता है। वह जन्मान्तर में उसी की होनता प्राप्त करता है। व्याख्या इस विषय पर आनरश्लोकों का भावार्थ कहते हैं- 'उत्तम, मध्यम और अधम आदि अनेक प्रकार का जातिभेद देख कर समझदार मनुष्य कभी जातिमद नहीं करता। शुभकर्म के योग से उत्तमजाति मिलने के बाद फिर अशुभकर्म के योग से हीनजाति में जन्म लेता है, इस प्रकार अशाश्वत जाति प्राप्त कर कौन मनुष्य जाति का अभिमान करेगा? अन्तरायकर्म के क्षय होने से लाम (कोई पदार्थ प्राप्त) होता है, उसके बिना नहीं। अतः वस्तुतत्त्व को जानने वाला लाभमद नहीं करता। दूसरे की कृपा से अथवा दूसरे के प्रयत्न आदि से महान् लाभ होने पर भी महापुरुष किसी भी प्रकार से लाभमद नहीं करते । अकुलीन की बुद्धि, लक्ष्मी और शीलसम्पन्नता देख कर महाकुल में जन्म लेने वाला कुलमद न करे। 'कुल का कुशीलता और सुशीलता से क्या सम्बन्ध है ? इस प्रकार जान कर विचक्षण पुरुष कुलमद नहीं करते। वन को धारण करने वाले इन्द्र के तीन लोक के ऐश्वर्य (वैभव) को जान-सुन कर कौन ऐसा व्यक्ति होगा, जो किसी शहर, गांव, धन, धान्य आदि के ऐश्वर्य का अभिमान करेगा ? दुःशीला (बदचलन) स्त्री के समान निर्मलगुण वाले के पास से भी ऐश्वयं चला जाता है, और दोषों का सहारा करता है; इसलिए विवेकी पुरुष को ऐश्वर्य का अहंकार नहीं करना चाहिए। बड़े-बड़े महाबली भी रोग आदि के कारण क्षण में निर्बल हो जाते हैं। इसलिए पुरुष में बल अनित्य होने से उमका भी मद करना उचित नहीं। बलवान भी वृद्धावस्था में, मृत्यु के समय अथवा अन्य कर्म के उदय के समय निर्बल होते देखे जाते हैं । इसलिए बलमद करना निर्थक है । सात धातुओं से बना हुआ यह शरीर भी बढ़ना-घटता रहता है, वृद्धावस्था में रोगों से व्याप्त हो जाता है ; अतः कौन ऐसे क्षणभंगुर
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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