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________________ ३१८ योगशास्त्र : तृतीय प्रकाश में रहे हुए अनेक सजीवों का वध होता है। इसलिए इस यन्त्रपीड़नकर्म का श्रावक को त्याग करना चाहिए। लौकिक शास्त्रों में भी कहा है कि चक्रयन्त्र चलाने से दस कसाईघरों के जितना पाप लगता है। अब निर्ला च्छन कर्म के बारे में कहते हैं नासावेधोनं मुकन्दनं पृष्ठगालनम् । कर्ण-कम्बल-विच्छेदो निर्लाञ्छनमुदीरितम् ॥१११॥ अर्थ-जीव के अंगों या अवयवों का छेदन करने का धंधा करना, उस कर्म से अपनी आजीविका चलाना; निलांछन कर्म कहलाता है। उसके भेद बताते हैं-बैल-भैसे का नाक बींधना, गाय-घोड़े के निशान लगाना, उसके अण्डकोष काटना, ऊंट की पीठ गालना, गाय आदि के कान, गलकम्बल आदि काट डालना, इसके ऐसा करने से प्रकटरूप में जीवों को पोड़ा होती है, अतः विवेकोजन इसका त्याग करे। अब असतीपोषण के सम्बन्ध में कहते हैं सारिकाशुकमार्जारश्व-कुर्कुट-लापिनाम् । पोषो दास्याश्च वित्तार्थमसतीपोषणं विदुः ॥११२॥ अर्थ-असती अर्थात् दुष्टाचार वाले, तोता, मैना, बिल्ली, कुत्ता, मुर्गा, मोर आदि तिर्यच पशु-पक्षियों का पोषण (पालन) करना, तथा धनप्राप्ति के लिए व्यभिचार के द्वारा दासदासी से आजीविका चलाना असतीपोषण है । यह पाप का हेतु है। अतः इसका त्याग करना चाहिए। अब दवदान और सर.शापरूप कर्मादान एक श्लोक में कहते हैं व्यसनात् पुण्यबुद्ध या वा दवदानं भवेद् द्विधा । सरःशोषः सरःसिन्धु-ह्रदादेरम्बुसंप्लवः ।११३॥ अर्थ-दवदान दो प्रकार से होता है-आदत (अज्ञानता) से अथवा पुण्यबुद्धि से तथा सरोवर, नदी, ह्रद या समुद्र आदि में से पानी निकाल कर सूखाना सरःशोष है। व्याख्या - घास आदि को जलाने के लिए आग लगाना दवदान कहलाता है। वह दोप्रकार से होता है। एक तो व्यसन (आदत) से होता है -- फल की अपेक्षा बिना, जैसे भील आदि लोग बिना ही प्रयोजन के (आदतन) आग लगा देते हैं, दूसरे कोई किसान पुण्यबुद्धि में करता है । अतः मरने के समय मेरे कल्याण के लिए तुमको इतना धर्म-दीपोत्सव करना है, इस दृष्टि से खेत में आग लगा देना, अथवा घास जलाने से नया घास होगा तो गाय चरेगी, या घास की सम्पत्ति में वृद्धि होगी; इस कारण आग लगाना दवदान है। ऐसे स्थान पर आग लगाने से करोड़ों जीव मर जाते हैं । तथा सरोवर, नदी, द्रह आदि जलाशयों में जो पानी होता है, उसे किसान अनाज पकाने के लिए क्यारी या नहर से खेत में ले जाना है । नहीं खोदा हुआ सरोवर और खोदा हुमा 'तालाब, कहलाता है। जलाशयों में से पानी सूखा देने से जल के अन्दर रहे हुए प्रसजीव और छह-जीवनिकाय का वध होता है । इस तरह मरोवर सुखाने से दोष लगता है।
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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