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________________ २६४ योगशास्त्र : तृतीय प्रकाश अर्थ रात में स्वच्छन्द घूमने वाले प्रेत, व्यन्तर, पिशाच, राक्षस आदि अधमजातीय देव वगैरह द्वारा स्पर्शादि से भोजन झूठा कर दिया जाता है, इसलिए रात में भोजन नहीं करना चाहिए। कहा भी है-रात को राक्षस आदि पृथ्वी पर सर्वत्र इधर-उधर घूमा करते हैं, और वे अपने स्पर्श से खाद्यपदार्थों को झूठे कर देते हैं तथा रात्रि में खाने वालों पर उपद्रव भी करते हैं। और भी देखिये--- घोरान्धकाररुद्धाः पतन्तो यत्र जन्तवः । नव भोज्ये निरीक्ष्यन्ते, तत्र भुजीत को निशि ४९॥ अर्थ घोर अन्धेरे में आंखें काम नहीं करती ; तेल, घी, छाछ आदि भोज्य पदार्थों में कोई चींटी, कीड़ा, मक्खी आदि जीव पड़ जाय तो वे आंखों से दिखाई नहीं देते। ऐसे में कौन समझदार आवमी रात को भोजन करेगा? अब रात्रिभोजन से प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले दोषों का तीन श्लोकों द्वारा वर्णन करते हैं मेधां पिपीलिका हन्ति, यूका कुर्याज्जलौदरम् । कुरुते मक्षिका वान्ति, कुष्टरोगं च कोकिलः ॥५०॥ कण्टको दारुखण्डं च वितनोति गलव्यथाम् । व्यंजनान्तनिपतितस्तालु विध्यति वृश्चिकः ॥५॥ लग्नाच गले वालः स्वरभंगस्तेन जायते । इत्यादयो दृष्टदोषाः सर्वेषां निशि भोजने ॥५२॥ अर्थ रात को भोजन करते समय भोजन में यदि चींटी खाई जाय तो वह बुद्धि का नाश कर देती है। जूनिगली जाय तो वह जलोदर रोग पैदा कर देती है। मक्खी खाने में आ जाय तो उलटी होती है, कनखजूरा थाने में आ जाय तो कोढ़ हो जाता है। कांटा या लकड़ी का टुकड़ा गले में पीड़ा कर देता है, अगर सागभाजी में बिच्छू पड़ जाय तो वह तालु को फाड़ देता है, गले में बाल चिपक जाय तो उससे आवाज खराब हो जाती है । रात्रिभोजन करने में ये और इस प्रकार के कई दोष तो सबको प्रत्यक्ष विदित हैं। व्याख्या रात को भोजन करने से कितने नुकसान हैं, यह बताते हुए कहते हैं-भोजन में अगर चींटी मा जाय तो उसके खाने पर बुद्धिनाश हो जाता है। जू खाने में आ जाय तो जलोदर रोग हो जाता है। मक्खी भोजन में पड़ जाय तो उसके खाने से उलटी हो जाती है। कनखजूरा खाने से कुष्टरोग हो जाता है । बबून आदि का कांटा या लकड़ी का टुकड़ा आ जाय तो गले में अटक कर पीड़ा पैदा करता है। बिच्छु साग में पड़ जाय तो उसे खा लेने पर तालु को फाड़ देता है। यहां प्रश्न होता है कि चींटी
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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