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________________ रात्रिभोजन से होने वाली हानियाँ २६५ आदि तो बारीक होने से दिखाई नहीं देती, मगर बिच्छू तो बड़ा होने से दिखाई देता है; वह भोजन में कैसे निगला जा सकता है ? इसके उत्तर में कहते हैं - बैंगन या इस प्रकार के किसी साग में, जो विच्छू के से आकार का होता है, तो बिच्छू को साग समझ कर कदाचित खा लिया जाय तो उसका नतीजा भयंकर होता है । गले में बाल चिपक जाय तो आवाज फट जाती है; साफ नहीं निकलती । ये और इस प्रकार के कई दोष तो प्रत्यक्ष हैं, जिन्हें अन्य धर्मसम्प्रदाय व दर्शन वाले भी मानते हैं । इसके अलावा रात्रि में भोजन बनाने में भी छह जीवनिकाय का वध होता है। रात्रि को वर्तन साफ करते समय और धोते समय पानी में रहे हुए जीवों का विनाश होता है । उस पानी को जमीन पर फेंकने से जमीन पर रेंगने वाले कुथुआ, चींटी आदि बारीक जन्तुओं का नाश होता है। इस कारण जीवरक्षा की दृष्टि से भी रात्रि को भोजन नहीं करना चाहिए। कहा भी है- 'रात को बर्तन मलने, उन्हें धोने और उस पानी को फेंकने आदि मे बहुत-से कुथुआ आदि वारीक जन्तु मर जाते है, उनकी हिंसा हो जाती है, इसलिए ऐसे रात्रिभोजन के इतने दोष हैं कि कहे नहीं जा सकते । यहां शंका होती है कि तैयार की हुई लड्डू आदि मिठाइयाँ या सूखी चीजें अथवा पके फल या सूखे मेवे आदि, जिनमें रात को पकाने, बर्तन धोने आदि की झंझट नहीं है, उन्हें अगर रात को सेवन कर लिया जाय तो क्या दोप है ? इसी के उत्तर में कहते हैं नाप्रेक्ष्य सूक्ष्मजन्तूनि निश्चयात् प्रासुकान्यपि । अप्युद्यत्केवल तैना यन्निशाऽशनम् ॥५३॥ अर्थ - रात को आँखों से दिखाई न दें, ऐसे सूक्ष्मजन्तु मोजन में होने से चाहे विविध प्राक (निर्जीव) भोजन ही हो, रात को नहीं करना चाहिए। क्योंकि जिन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया है, उन्होंने ज्ञानचक्षुओं से जानते-देखते हुए भी रात्रिभोजन न तो स्वीकार किया है, न विहित किया है। व्याख्या - दिन में तैयार किया हुआ प्रासुक और उपलक्षण से रात को नही पकाया हुआ भोजन हो, फिर भी लड्डू, फल, सूखे मेवे आदि रात को नही खाने चाहिए। प्रश्न होता है—क्यों ? किस कारण से ?' उत्तर में कहते हैं— सूर्य के प्रकाश के अतिरिक्त अन्य किसी भी तेज से तेज प्रकाश में सूक्ष्म जीव-पनक, कुंथुआ आदि नजर नही आते, इस कारण से केवलज्ञानियों ने ज्ञानबल से यह जान कर रात्रिभोजन का विधान नहीं किया और न स्वीकार किया कि रात में भोजन के अंदर आ कर बहुत-से सूक्ष्म जीव पड़ जाते हैं, इसलिए वह भोजन जीवरहित नहीं रहता । निशीथ भाष्य में बताया है कि 'यद्यपि मोदक आदि सूखे और प्रासुक पदार्थं रात में तैयार न करके दिन में ही बनाए हुए हों, फिर भी कुंथुआ, काई – फूलण (पनक) आदि बारीक जन्तु रात में नहीं दिखाई देते, इसलिए उन्हें न खाए । प्रत्यक्षज्ञानी केवलज्ञानी सर्वज्ञ अपने ज्ञानबल से उन सूक्ष्मजीवों को जान या देख सकते हैं; फिर भी वे रात्रिभोजन नहीं करते । यद्यपि दीपक आदि के प्रकाश में चींटी आदि जीव दिखाई देते हैं, लेकिन कई बार रात्रि में भोजन करते समय बारीक उड़ने वाले जन्तु दीपक आदि के प्रकाश में पड़ कर या भोजन में गिर कर मर जाते हैं, इसलिए विशिष्ट ज्ञानियों ने मूलव्रत अहिंसा के भंग होने की सम्भावना से रात्रिभोजन स्वीकार नहीं किया और न ही विहित किया । ૩૪
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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