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________________ मद्यपान से होने वाले अनर्थ और विडम्बना उद्यपानरस मग्नो नग्नः स्वपिति चत्वरे । गुढं च चमाप्रायं प्रकाशयति लीलया ॥१२॥ अर्थ शराब पीने में मस्त शराबी बाजार में कपड़े अस्त-व्यस्त करके जाता है और अपनी गुप्त बात को या राज्यद्रोह आदि गुप्त रखे जाने वाले ही किसी मारपीट या गिरफ्तारी के अनायास ही प्रगट कर देता है । वारुणीपानतो यान्ति कान्तिकीर्तिमतिश्रियः । विचित्राश्चित्ररचना, विलुण्ठत्कटं ॥१३॥ सरेआम नंगा सो अपराध को बिना भूतात्तवन्नरोर्नाति रारटीति शाकवत् 1 दाहज्वरार्त्तवद् भूमौ सुरापो लोलुठीति च ॥ १४ ॥ अर्थ जैसे अतिसुन्दर बनाए हुए चित्रों पर काजल पोत देने से वे नष्ट हो जाते हैं, वैसे ही मदिरापान से मनष्य की कान्ति, कीर्ति, बुद्धि-प्रतिभा और सम्पत्ति नष्ट हो जाती है । २४१ अर्थ मद्यपान करने वाला भूत लगे हुए की तरह बार बार नाचता- कूदता है, मृतक के पीछे शोक करने वाले की तरह जोर-जोर से रोता-चिल्लाता है, वाहज्वर से पीड़ित व्यक्ति की तरह इधर-उधर लोटता है, छटपटाता है । इसी प्रकार - विदधत्यंगशैथिल्यं, ग्लपयतीन्द्रियाणि च । मूर्च्छामतुच्छां यच्छन्ती हाला हाला लापमा ॥ १५ ॥ अर्थ हलाहल जहर की तरह शराब पीने वाले के अंगों को सुस्त कर देती है, इन्द्रियों की कार्यशक्ति क्षीण कर देती है, बहुत जोर की बेहोशी पैदा कर देती है । विवेकः संयमो ज्ञानं सत्यं शौचं दया क्षमा । मसलायते सर्वं तृप्या वह्निकणादिव ॥ १६ ॥ अर्थ जैसे आग की एक ही चिनगारी से घास का बड़ा भारी ढेर जल कर भस्म हो जाता है; जैसे ही मद्यपान से हेयोपादेय का विवेक, संयम, ज्ञान, सत्यवाणी, आधार रूप शौच, दया, क्षमा आदि समस्त गुण नष्ट हो जाते हैं ।
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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