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________________ २५० योगशास्त्र : तृतीय प्रकाश है, दसरा आटा, महड़ा आदि पदार्थों को सड़ा कर बनाया जाता है, जिसे शराब कहते हैं। जलचर, स्थलचर और खेचर जीवों के भेद से मांस भी तीन प्रकार का है। मांस के साथ उससे सम्बन्धित चमड़ी, हड्डी, चर्बी, रक्त आदि भी समझ लेना । गाय, भैंस, बकरी और मेड इन चारों के दूध से मक्खन तैयार होता है, इसलिए चार प्रकार का मक्खन तथा मधु मक्सी, भ्रमरी और कुत्तिका इन तीनों का मष, उदूम्बर (गुल्लर) आदि पांच अनन्तकायिक फल, अजाने फल, रात्रिभोजन, कच्चे बही-छाछ के साथ मिले हुए मूग, चने, उड़द, मोठ आदि द्विदल (बालें), फूलन (काई) पड़े हुए चावल, दो दिन के बाद का दही, सड़ा बासी भन्न; इन सबका सेवन करना छोड़े। अब मद्य से होने वाले कुपरिणामों (दोषों) का विवरण दस पलोंकों में प्रस्तुत करते हैं मदिरापानमात्रेण बुद्धिनश्यति दूरतः। वैदग्धीबन्धुरस्यापि, दौर्भाग्येणेव कामिनी॥८॥ अर्थ जैसे चतुर से चतुर पुरुष को भी दुर्भाग्यवश कामिनी दूर से ही छोड़ कर भाग जाती है, वैसे ही मदिरा पीने मात्र से बुद्धिशाली पुरुष को भी छोड़ कर बुद्धि पलायन कर जाती है। और भी सुनिये पापाः कादम्बरीपानविवशीकृतचेतसः । जननी वा प्रियोयन्ति जननीयन्ति च प्रिया॥९॥ अर्थ मदिरा पीने से चित्त काबू से बाहर हो जाने के कारण पापात्मा शराबी होश सो कर माता के साथ पत्नी जैसा और पत्नी के साथ माता-सा व्यवहार करने लगता है। न जानाति परं स्वं वा मद्याच्चलितचेता:। स्वामोयति वराक: स्वं स्वामिनं किंकरीयति ॥१०॥ अर्थ मदिरा पीने से अव्यवस्थित (चंचल) चित्त व्यक्ति अपने पराये को भी नहीं पहिचान सकता। वह बेचारा अपने नौकर को मालिक और मालिक को अपना नौकर मान कर व्यवहार करने लगता है। बेसुध होने से बेचारा दयनीय बन जाता है। मद्यपस्य शवस्येव लुठितस्य चतुष्पथे। मूत्रयन्ति मुखे श्वानो व्यात्ते विपर कया ॥११॥ ___ अर्थ शराब पीने वाला शराब पी कर जब मुर्दे की तरह सरेआम चौराहे पर लोटता है तो बड़े को आशका से उसके खुले हुए मुंह में कुत्त पेशाब कर देते हैं।
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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