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________________ राम और रावण का युद्ध ११३ करने के लिए राक्षससम श्रीराम ने रावण के छोटे भाई कुम्भकर्ण को तथा लक्ष्मण ने रावणपुत्र मेघनाद को नीचे गिरा कर पकड़ लिया । यह देखते ही ऐरावण के समान विशालकाय एवं जगत् में भयंकर रावण रोष से दांत पीसता हुआ समग्र वानरसन्यरूपी हाथियों को पीसने के लिए युद्धभूमि में आया । तभी लक्ष्मण ने श्री राम से कहा- "आर्य ! आपको युद्धभूमि में अभी आने की आवश्यकता नही । मैं अकेला ही इन सबसे निपट लूगा।" इस प्रकार राम को रोक कर लक्ष्मण स्वयं बाणवर्षा करता हुआ शत्र के सम्मुख आया। अस्त्रविद्या में प्रवीण रावण ने जितने अस्त्र छोड़े, लक्ष्मण उन्हें काटता गया। अन्त में, रावण ने लक्ष्मण की छाती पर अमोघशक्ति नामक अस्त्र का जोर से प्रहार किया। इस शक्ति के प्रहार से लक्ष्मण पृथ्वी पर मूच्छित हो कर गिर पड़े। बलवान राम के हृदय में शोक छा गया। प्राणप्रण से हितैषी सुग्रीव आदि ८ मुभटों ने सुरक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को चारों ओर घेर लिया। रावण ने हर्षित हो कर सोचा-' आज लक्ष्मण मर जायगा । लक्ष्मण के वियोग में राम की भी वही दशा होगी। अब बेकार ही मुझे युद्ध करके क्या करना है ?' यों सोच कर वह नगर की ओर चल दिया। राम को किले की तरह कई सैनिक सुरक्षा के लिए घेरे हुए थे। राम के आवास के चारों दरवाजों पर सुग्रीव आदि खड़े थे। तभी दक्षिणदिशा के द्वार के रक्षक भामण्डल के पूर्व परिचित एक विद्याधर-नेता ने आ कर कहा 'अयोध्या नगरी से १२ योजन पर कौतुकमंगल नामक नगर है, वहाँ के राजा द्रोणधन कैकयी के भाई हैं । उसके विशल्या नामक एक कन्या है। उसके स्नान किये हुए जल के स्पर्श से तत्काल शल्य (तीर का विष) चला जाता है । अगर सूर्योदय से पहले-पहले वह जल ला कर लक्ष्मण पर छीटा जाए तो यह शल्यरहित हो कर जी जाएगा, नहीं तो जीना मुश्किल है। इसलिए मेरी राय में श्रीराम से शीघ्र निवेदन करके किसी विश्वस्त को उसे लाने की आज्ञा दे देनी चाहिए। इस कार्य के लिए शीघ्रता करो। सबेरा हो जाने पर फिर कोई उपाय काम नहीं आएगा। गाडी उलट जाने पर गणपति क्या कर सकता है ? भामण्डल ने तुरंत श्रीराम के पास जा कर सारी बात समझाई । अतः हनुमान और भामण्डल दोनों तूफान के ममान शीघ्रगामी विमान में बैठ कर अयोध्या आये । उस समय भरत अपने महल मे सोय हुए थे, अतः दोनों ने उन्हें जगाने के लिए मधुर गीत गाए । 'राज्यकार्य के लिए भी राजाओं को मधुर गीत से जगाया जाता है।" भरतजी निद्रा छोड़ कर अंगड़ाई लेते हुए जाग पड़े, सामने भामंडल को नमस्कार करते हुए देखा । आने का प्रयोजन पूछा तो भामण्डल ने उस महत्वपूर्ण कार्य का जिक्र किया । 'हितवी ईष्ट व्यक्ति को भी इष्ट कार्य के सम्बन्ध में अधिक नहीं कहा जाता।' भरत ने सोचा-मेरे स्वयं जाने पर ही यह कार्य सिद्ध हो सकेगा । अतः विमान में बैठ कर वे तुरन्त कौतुकमंगल नगर आए । द्रोणधन राजा से उन्होंने लक्ष्मण के लिए विशल्या की मांग की। उन्होने मांग स्वीकार करके विशल्या को बुला कर हजार कन्याओं के साथ उसे दो । भामंडल भी भरत को अयोध्या में छोड़ कर कन्याओं के परिवार सहित विशल्या को ले कर उत्सुकतापूर्वक वहां पहुंचे। प्रकाशमान दीपक के समान उस विमान में भामण्डल को बार-बार सूर्योदय होने की भ्रान्ति हो जाने से वे भयभीत हो जाते थे । विमान से उतरते ही भामंडल विशल्या को सीधे ही लक्ष्मण के पास ले गए। लक्ष्मण को हाथ से स्पर्श करते ही लाठी से जैसे सपिणी निकल कर चली जाती है, वैसे ही शक्ति (विषबुझे बाण की मार) निकल कर चली गई। उसके बाद राम की आज्ञा से विशल्या का स्नानजल अन्य संनिकों पर भी छोटा गया, जिससे वे शल्य रहित हो कर नये जन्मग्रहण की तरह उठ खड़े हुए। फिर कुम्भकर्ण आदि को विशल्या का स्नानजल छींटने का श्रीराम ने उच्च स्वर से कहा । किन्तु द्वारपालों ने कहा-"देव ! उन्होंने तो उसी समय
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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