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________________ २१४ योगशास्त्र : द्वितीय प्रकाश स्वयं दीक्षा अंगीकार कर ली है।" राम ने यह सुनते ही कहा- 'तब तो वे मुक्तिमार्ग के पथिक हैं, वन्दनीय हैं, उन्हें तो बन्धनमुक्त कर देना चाहिए ।" राम की आज्ञा से रक्षकों ने नमस्कार करके तत्काल उन्हें बन्धनमुक्त कर दिये । इसके बाद विशल्या और उसके साथ आई हुई सभी कन्याओं का लक्ष्मण के साथ विधिवत् पाणिग्रहण हुआ । क्रोधमूर्ति रावण को ये समाचार मिलते ही वह पुनः युद्धभूमि मे आ धमका। क्योकि पराक्रमी वीर पुरुषों के लिए विवाहोत्सव से भी बढ़कर युद्धोत्सव होता है । रावण जब जब अस्त्र छोड़ता था, लक्ष्मण उसे केले के पत्ते के समान काट देता था । अपने हथियार खण्डित हो जाने से क्रुद्ध रावण ने चक्र फेंका । वह चक्र लक्ष्मण को छाती में तमाचे के समान लगा; मगर उसकी धार नहीं लगी, इससे उसका बाल भी बांका न हुआ । लक्ष्मण ने उसी चक्र को वापिस रावण पर चलाया, जिससे रावण का मस्तक कट कर गिर पड़ा। किसी समय अपने ही घोड़े से व्यक्ति गिर पड़ता है ।' रावण के निधन के बाद राम स्वर्णशलाका के समान निर्मल शील से सुशोभित सीता से मिले और उसे लेकर अपने निवास पर आए । विभीषण को लंका की राजगद्दी पर बिठा कर श्रीराम लक्ष्मण, सीता, बन्धु पत्नी एवं ममस्त मित्रों, स्वजनों के साथ अयोध्या लौटे । परस्त्रीगमन की आकांक्षा के कारण रावण का कुल नष्ट हो गया और उसे नरक का अतिथि बनना पड़ा । यही सीता रावण कथा का हार्द है । इस उदाहरण से दुस्त्यजा परस्त्री का त्याग करना चाहिए । यही बात अगले श्लोक में कहते हैं लावण्यण्यावयवां पदं सौन्दर्यसम्पदः । कलाकलापकुशलामपि जह्यात् परस्त्रियम् ॥ १००॥ अर्थ परस्त्री चाहे कितनी ही लावण्ययुक्त हो, शुभ अङ्गोपांगों से युक्त हो, सौन्दर्य एवं सम्पत्ति का घर हो, तथा विविध कलाओं में कुशल हो, फिर भी उसका त्याग करना चाहिए । व्याख्या परस्त्री को यहाँ 'दुस्त्यजा' कहा है, उसका क्या कारण है ? यह इस श्लोक में बताया गया - लावण्य, रूप आदि में कई स्त्रियां इतनी अधिक स्पृहणीय होती हैं, कई पूर्वपुण्य के कारण सुन्दर एवं सुडौल अंगोपांगों के कारण दर्शनीय होती हैं. सौन्दर्यसम्पदा में बढ़कर होती हैं, स्त्रियोचित ६४ कलाओं में प्रवीण होती हैं, अत: इन कारणों से पुरुष मोहवश छोड़ना नहीं चाहता, इसलिए परस्त्री को दुस्त्यज' कहा । अतः परस्त्री चाहे कितनी ही सुन्दर, कलानिपुण, चतुर एवं गुणों से सुशोभित हो, वह पराई ही है, इसलिए त्याज्य समझ कर छोड़नी चाहिए । परस्त्रीगमन के दोष बता कर अब परस्त्रीत्यागी की प्रशंसा करते हैं अकलंकमनोवृत्तेः परस्त्री - राशियापं । सुदर्शनस्य कि ब्रूमः सुदर्शनसमुन्नतेः ? ॥१०१॥ अर्थ परस्त्री के पास रहने पर भी निष्कलंक मनोवृत्ति वाले सुदर्शन महाश्रावक. जिसके
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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