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________________ १६१ रोहिणय थोड़े-से भगवद्वचनश्रवण के कारण मृत्युदण्ड से बचा खुली छूट दी जाती है।' 'ओ हो ! नये स्वामी के लाभ की खुशी में हम यह कहना ही भूल गये इनसे ।' fo..र चोर के पास जा कर उन सबने कहा - 'स्वामिन् ! आप हम पर प्रसन्न हैं, इसलिए आप देवलोक की आचारमर्यादा का पालन करिये । यहां जो जन्म लेता है, उससे सर्वप्रथम अपने पूर्वजन्म में किये हुए शुभाशुभ कार्यों का हाल बताना आवश्यक होता है, तत्पश्चात् उसे स्वर्गसुखोपभोग करने की छूट दी जाती है । यही यहां का आचार है।" चोर ने मोचा-यह सचमुच देवलोक है या मुझे फसाने के लिये अभयकुमार का रचा हुआ मायाजाल है ? कही ऐसा तो नहीं है कि मुझ से भेद जानने के लिए यह प्रपंच किया हो ? क्या कहा जाय इन्हें ? इतने में उसे काटा निकालते समय कानों में पड़े हुए भगवान् के ये वचन याद आए । अगर भगवान् महावीर से सुने हुए देवस्वरूप से मिलताजुलता ही इनका स्वरूप होगा, तब तो मैं सारी बाते सच-सच कह दूंगा, अगर ऐसा न हुआ तो फिर कुछ बना कर झूठी बात कह दूंगा।' यों विचार कर चोर ने उनके पैर जमीन से समर्श करते हुए देखे, उनके नेत्रों की पलके झपती हुई देखी. पुष्पमाला भी मुझाई हुई नजर आई, साथ ही उनके शरीर पर पसीना और मल भी देखा । यह सब देख कर उसने सोचा-यह सब मायाजाल ही है । अतः वह उत्तर के लिए कुछ सोचने लगा। तभी दिव्यरूपधारियों ने उममे फिर कहा- 'देव ! आप अपना पूर्वजीवन सुनाइये, हम सुनने के लिए उत्सुक हैं । रोहिणय बोला-'मैंने पूर्वजन्म में सुपात्रदान दिया था। अनेक तीर्थयात्राएं की थी। भगवान और गरु की सेवाभक्ति की थी। और भी अनेक धर्मकार्य किय।' पहरेदार ने बीच में ही बात काट कर कहा-'अच्छा अब अपने दुष्कृत्यों का भी बयान कीजिए।' रोहिणेय ने कहा ... सतत साधुममागम होने से मैंने अपने जीवन में कोई गलत काम नहीं किया।' प्रतीहार ने कहा ---"जिंदगीभर मनुष्य एक सरीखे स्वभाव वाला नही रहता ; इसलिए आपने अपने जीवन मे चोरी, परदारासेवन, आदि जो भी गलत काम किये हों उन्हें प्रगट कीजिए ।' रोहिणेय ने कहा-'क्या ऐसा बुरा कर्म करने वाला कभी स्वर्ग प्राप्त कर सकता है ? क्या अधा आदमी पहाड़ पर चढ़ सकता है ?' वे सब उस चोर की बात सुन कर चुप हो गए और अभयकुमार के पास जा कर आद्योपान्त सारा विवरण कह सुनाया। ___ सारा वृत्तान्त सुन कर अभयकुमार ने राजा श्रेणिक से निवेदन किया -"महाराज! कई उपायों से हमने इसकी जांच की, परन्तु इसका चोर होना साबित नहीं होता। कदाचित् चार होगा भी; लेकिन जब कानून की गिरफ्त में न आए, तब तक हम इसे न्याय की दृष्टि से कैसे पकड़ सकते है ? इसलिए न्यायनीति का पालन करते हुए हमें इसे छोड़ देना चाहिए।" राजा की आज्ञा के अनुसार अभयकुमार ने रोहिणेय को छोड़ दिया। 'धूर्तता में दक्ष व्यक्ति से बड़-बड़े होशियार आदमी भी ठगे जाते हैं।' अब रोहिणेय विचार करने लगा पिताजी ने नाहक हो सतवाणी न सुनने की आज्ञा दे कर चिरकाल तक मुझे भगवान् के वचनामृतों से वंचित रखा । अगर प्रमु के वचन मेर कानों में नही पड़ते तो मैं कृत्रिम देवताओं के इस जाल को कैसे समझ पाता और कैसे इनक जाल से इतनी सफाई से छुटकारा पा सकता था ? मैं तो अब तक इनकी मार खा कर खत्म कर दिया गया होता। अनिच्छा से भी सुने हुए बे भगवद्वचन रोगी के लिए संजीवनी औषधि को तरह मेरे लिए आज जिलाने वाले बन गए । धिक्कार है मुझं ! मैंने अब तक अर्हन के वचनों को ठुकरा कर चोरों के वचन ही माने, उन्हीं की बातों में आ गया, उन्हीं से ही प्रेम किया। सचमुच, आम के पेड़ों को छोड़ कर जैसे कोबा नीम के पेड़ो पर बैठन म मानन्द मानता है, वैसे ही मैंने भगवान् के वचनों को छोड़ कर पिताजी के वचनों में चिरकाल तक आनंद माना । फिर भगवान् के उपदेश का मैंने जरा-सा अंग सुना था, जिसका भी इतना सुफल मिला तो
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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