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________________ सम्यक्त्व के पांच भूषण १०५ अब सम्यक्त्व के ५ भूषण बताते हैं स्थैर्य, प्रभावना, भक्तिः ; कौशलं जिनशासने । तीर्थसेवा च पञ्चाऽस्य भूषणानि प्रचक्षते ॥१६॥ अर्थ (१) जिनशासन (धर्मसंघ) में स्थिरता, (२) उसको प्रभावना (प्रचार-प्रसार), (३) भक्ति, (४) उसमें कुशलता और (५) तीर्थसेवा ये पांच उक्त सम्यक्त्व के भषण (शोमावद्धक) कहे गये हैं। व्याख्या मम्यन्त्र के माथ जिनके जुड़ने से उसकी शोभा बढ़ , उसे मम्यक्त्वभूषण कहते हैं । ये जिन शासन (धर्मसंघ) की शोभा बढ़ाने वाले भूषण पांच हैं (१) जिनोक्त धर्म (संघ) में स्थिरता--किसी का मन आपत्ति, शंका आदि कारणों से धर्म से चलायमान हो रहा हो. कोई व्यक्ति धर्म से डिग रहा हो या पतित हो रहा हो, उसे समझा-बुझा कर उपदेश या प्रेरणा दे कर धर्म में स्थिर करना अथवा अन्यसम्प्रदापीय (दर्णनीय) ऋद्धि-समृद्धि, आडम्बर या चमत्कार देख कर स्वयं भी जिनशासन के प्रति अस्थिर न होना स्थिरता है। () धर्म (शासन) प्रभावना-जिसे जिनशासन नही प्राप्त हुआ, उसे विभिन्न प्रभावनाओं प्रचार-प्रसार के विभिन्न निमिनो द्वाग शासन की ओर प्रभावित करना । प्रभावना करने वाले ८ प्रकार है-प्रावनिक, प्रमंकथाकार, बादी, नैमिनिक, तपस्वी, विद्यावान, सिद्धिप्राप्त और कवि । प्रावनिक या प्रवचन-प्रभावक-जो द्वादशांगीरूप प्रवचनों या गणिपिटकों के अतिशय ज्ञान द्वारा युगप्रधान शैली में जनता को प्रभावित करता है, जनता में आगमज्ञान के प्रति प्रकर्ष भावना पैदा करता है ; अपने युगलक्षी प्रवचनी से जनजीवन को धर्माचरण के लिए प्रेरित करता है, वह प्रवचनप्रभावक कहलाता है। धर्मकपा-प्रभावक- जो विविध युक्ति, दृष्टान्त आदि के द्वारा जनता को सुन्दर धर्मोपदेश देने की शक्ति रखता हो और जनता को धर्मकथा से प्रभावित करके धर्मबोध देता हो, वह धर्मकथा प्रभावक कहलाता है। बाद-प्रभावक ---जो वादी, प्रतिवादी, सभ्य और सभापति-रूप चतुरंगिणी सभा में प्रतिपक्ष की युक्तियों का खण्डन करके स्वपक्ष की स्थापना करने में समर्थ हो । इस प्रकार अपनी वाद (तकं) शक्ति से लोगों को प्रभावित करता हो, उसे वादप्रभावक कहते हैं। निमित्त-प्रमावक-जो भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों काल-सम्बन्धी लाभालाभ का विज्ञ हो तथा निमित्तशास्त्रज्ञ हो ; और अपने उक्त ज्ञान से जनता को उसके भूत, भविष्य एवं वर्तमान के जीवन से धर्मबोध दे कर धर्मसाधना की ओर आकर्षित करता हो, वह निमित्त-प्रभावक होता है। तपस्या-प्रभावक (तपस्वी)--अट्ठम आदि विविध कठोर तपस्या करके जनता को आत्मशक्ति
SR No.010813
Book TitleYogshastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmavijay
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year1975
Total Pages635
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size48 MB
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