SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपसंहार पदार्थ-विचार तथा यथार्थ तात्विक निर्णय स्याद्वाद द्वारा ही होता है। एक ही दृष्टिकोण से विचार करना जहाँ पारस्परिक विवाद का मूल कारण रहता है, वहीं एक अधुरा एवं असत्य भी रहता है, ये त्रुटियाँ स्याद्वाद से दूर हो जाती है। अतः बद्धि-विकास, यथार्थ निर्णय, पारस्परिक विवाद-निवारण के लिये स्याद्वाद सिद्धान्त परम उपयोगी है। अनेकान्तवाद, सप्तभङ्गीवाद, 'स्याद्वाद' के ही नामान्तर हैं। 'नय अनन्त इह विधि कही, मिल न काहू कोई / जो सब नै साधन करे, स्थाढाव है सोई॥' -नाटक समयसार, बनारसीदास // 7 // नय* अनेक है, कोई किसी से नहीं मिलते, परस्पर विरुद्ध है और जो सव नयों को साधता है, वह 'स्याहाद' है। DD *माता के हृदय के अभिप्राय को 'नय' कहते हैं
SR No.010812
Book TitleTirthankar Varddhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandmuni
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1973
Total Pages100
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy