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________________ २६ ] [ प्राक्कधर्म-प्रकाश है। भगवानके शानमें जिसकी महा-पात्रता भासित हुई उसके समान बड़ा अभिनन्दन (सन्मान ) क्या ? वह तो तीन लोकमें सबसे महान् सर्वशताको प्राप्त होगा। और दुनिया भले पूजती हो, परन्तु भगवानने जिसे धर्मके लिये अयोग्य कहा तो उसके समान अपमान अन्य क्या ? अहो, भगवानकी वाणीमें जिस जीवके लिये ऐसा माया कि यह जीव तीर्थकर होगा, यह जीव गणधर होगा तो उसके समान महा भाम्य अभ्य क्या ? सर्वक्षके मार्गमें सम्यग्दृष्टिका बड़ा सन्मान है, और मिथ्याष्टिपना यही बड़ा अपमान है। इस घोर दुःखसे भरे हुवे संसारमें भटकते जोवको सम्यग्दर्शन प्राप्त होना बहुत दुर्लभ है, परन्तु वही धर्मका मूल है-ऐसा समझकर आत्मार्थीको पहले ही उसका उद्यम करना चाहिये। जो मुनिदशा हो सके तो करनी, और वह न हो सके तो श्रावकधर्मका पालन करना-ऐसा कहते हैं, परन्तु उन दोनोंमें सम्यग्दर्शन तो पहले होना चाहिये, यह मूलभूत रखकर पीछे मुनिधर्म या श्रावकधर्मकी बात है। प्रश्नः-यह सम्यग्दर्शन किस प्रकार होता है ? उत्तरः-'भूयत्थमस्सिदो खलु सम्माइट्ठी हवइ जीवो' अर्थात् संयोग और विकार रहित शुद्ध चिदानन्द स्वभाव कैसा है उसे लक्ष्यमें लेकर अनुभव करनेसे सम्यग्दर्शन होता है। अन्य किसीके आश्रयसे सम्यग्दर्शन होता नहीं। संयोग या बन्धभावजितना ही आत्माको अनुभव करना और ज्ञानमय अबन्धस्वभावी आत्माको भूल जाना वह मिथ्यात्व है। मिथ्यात्व सहितकी क्रियाएँ वे सब एक इकाई बिना की, शून्योंकी तरह धर्मके लिये व्यर्थ हैं। छहढालामें पंडित दौलतरामजीने भी कहा है कि मुनिव्रत धार अनंतवार ग्रीवक उपजायो, पै निज आतमहान विना सुख लेश न पायो । गणधरावि सन्तोंने सम्यग्दर्शनको मोक्षका बीज कहा है। यदि कोई बीजके बिना वृक्ष उगाना चाहे तो कैसे उगे ?-लोग उसे मूर्ख कहते हैं। उसी प्रकार सम्यग्दर्शनके बिना जो धर्मरूपी वृक्ष लगाना चाहते हैं वे भी परमार्थसे मूर्ख हैं। जिसे अन्तरमें रागके साथ एकतावुद्धि अत्यन्त टूट गई है और बाह्यमें बसादिका परिप्रह छूट गया है ऐसे वीतरागी सन्त महात्माका यह कथन है। जीवको अनन्त कालमें अन्य सब कुछ मिला है परन्तु शुद्ध सम्यग्दर्शन कभी प्राप्त नहीं
SR No.010811
Book TitleShravak Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal Jain, Soncharan Jain, Premchand Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year1970
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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