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________________ कर्ता-कर्म-अधिकार प्रार्या यः परिगमति म कर्ता यः परिणामो भवेत्तु तत्कर्म । या परिणतिः क्रिया ना त्रयमपि मिन्नं न वस्तुतया ॥६॥ जो कोई मना मात्र वस्तु जिन अवस्था रूप है उस रूप अपने से ही है। उग अवस्था का कना मत्ता मात्र वस्तुहा है। जिम द्रव्य का जो कुछ म्वभाव परिणाम है उसी का उम द्रव्य का परिणाम कर्म कहते हैं। जो द्रव्य पूर्व अवस्था में उनर अवस्थाम्पहआ वही किया है। जैसे, मिठो घटरूप होती है. मा मद्रां को कनां कहा: उममे घटा बना, तो वह कम हआ। मिली। पिट घटरूर होना क्रिया कहीं। मनाम्प वस्तु का कता कहा, उमम जी । अवम्या उपजी उंग परिणाम कम कहा तथा वह ज ( उपजने कप , त्रिया हम उसको। क्रिया कहा । मना मात्र वम्त का अनुभव करीना कना-यम- या कप नीन मद निचय ही नीन मना ता नहीं, एक ही गता है। भावार्थ -- कता : मं-प्रिया का स्वरूप ना इसी प्रकार है। इसमें जानावरणादि द्रव्यापडम्प कम का कता जाव द्रव्य है एसा जानना अठा है। उनर साय जीव द्रव्य क. एक मना नहीं है फिर कर्ता-कम-क्रिया मबंध (उनमे) परम्पर घट हा का गाने है . अर्थात् नहीं घट मकत ।।६।। दोहा-कर्ता वारणामो द्रव्य, कर्म रूप परिणाम । क्रिया पर्याय को फेरनी, वस्तु एक प्रय नाम ॥६॥ प्रार्या एकः परिगति सदा परिगानो जायते सबैकस्य । एकस्य परिणतः स्यादनेकमप्येकमेव यतः ॥७॥ त्रिकाल में मनामात्रवस्तु अपनी में अवम्थान्तरम्प होती है और त्रिकालगांचर होने वाला अवस्थाओं के माथ एक मना मात्र है। भावार्थ--मनामात्र वस्नु, अवस्थास्प है तथा अवस्था अपनी वस्नुरूप है । और फिर किया मना मात्र वस्नु की है। भावार्थ---त्रिया वस्तुमात्र ही है, वस्तु में भिन्न (उसकी) सता नहीं है। इस प्रकार यद्यपि एक मनः के मंद मे कर्ना-कम-क्रिया में तीन भेद हैं तथापि सत्ता नो वस्तुमात्र ही है। तीनों ही विकल्प मूठे हैं। भावा
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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