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________________ समयसार कलश टीका मोह गोष करमको करतातो से 4, प्रकरता को शुद्धता के परमानसों ॥४॥ स्त्रग्धरा जानी जाननपीमा स्व-परपरिणति पुद्गलश्चाप्यजानन व्याप्तृव्याप्यत्वमन्तः कलयितुमसही नित्यमत्यन्तमेदात् । प्रजानात्क-कर्मभ्रमतिग्नयोर्माति तावन्न यावद्विजानाधिश्नकास्ति क्रकचवदयं भेदमुत्पाद्य सद्यः ॥५॥ जितने कान भद-ज्ञानरूप अनुभव प्रगट नहीं होता उतने काल जीव और पुदगल . मंबध म मा भ्रम रहता है कि जानवरणादि का कर्ना जीव द्रव्य ही है। अज्ञानपन ग मी मिथ्या-प्रतानि होता है, वम्त का स्वरूप तो मा नहीं। प्रश्न---ज्ञानवरणादि का कनां जान है मा अजानपना क्या है ? उनर... जाव वम्न नथा ज्ञानावरणादि कर्मापर परिणामी परिणाम भाव. एन. मक्रमणहान म असमर्थ है। द्रव्य-स्वभाव, दाना में अति ही भद है : व्याग जीव द्रव्य द. भिन्न प्रदा चैतन्य म्वभाव. पद्गल द्रव्य के भिन्न प्रदंदा अचनन स्वभाव "मा बहुत भद ।। प्रसिद्ध है कि ज्ञानी अपनी तथा जितनी भी जय वस्तु है उनकी परणात अथांन् द्रव्य-गुण-पर्याय अथवा उनके उम्पाद-व्यय-धाव्य का जाना है। प्रगट है कि पुदगल अप या जितने भी परद्रव्य है उनके द्रव्य-गुण-पर्याय आदि को नहीं जानता है। ऐसा है पुदगल द्रव्य । भावार्थ.... जीव द्रव्य जाता है और पद्गन कम जय है. ! "सा जीव का जय-ज्ञायक नबध है। परन्तु व्याप्य-व्यापक मबध न।। द्रव्य का अति भिन्नपना ... एकपना नहीं है। भदज्ञानरूप अनुभव ने. आरके तरह शीघ्र ही जीव व पुदगल के भेद को उत्पन्न किया है ।।५।। छप्पर जोर जान-गुण नहित, प्रापमा परगण जायक । पापा परगरण लते. नाहि पुद्गल र लायक ।। जीव रूप चिद्रप महज, पृदगल प्रचेत जा। जोर प्रमति, मूग्नीक पुदगल. अन्नर बह ॥ जब लग न होड अनुभौ प्रकट. तब लग मिथ्यानि लमे । परतार जोब उड़ करम को, मुद्धि विकाश यह भ्रम नसे ॥५॥
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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