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________________ सुखात्म-सन्य अधिकार १॥ सकल कर्म की उपाधि मे रहित ह ऐमा मेग म्वानुभव में प्रत्यन स्प मुझे बाम्बाद में आता है। अशुद्ध पग्नि का ब्योरा - एक अगुर परिणति अतोन काल के विकल्प सप है कि मैंने एमा किया था. मा भोगा पा इम्यादि । एक अगड परिणति आगामी काम के विषय में सम्बन्धिन ? कि मै एमा कागा, करने में ऐमा होगा इम्यादि। एक अट परिणति वर्तमान विषय प है कि मैं न है, मैं गजाह. मेरे पास मा मामग्री है, मन मा गुग अथवा दुग इत्यादि प्राप्त है। एक ऐसा भी विकल्प है कि अमुक हिसादि क्रिया मैने की, अमुक हिमादि क्रिया अन्य किमी जीव को उपदेश देकर करवाई या कि.मी दाग वय महज कोहः हिमादि क्रिया में मम माना। और एक गया भी विकल्प है जो मन में कुछ चितन करना, वचन में कुछ बालना और काया में प्रत्यक्ष रूप में कुछ करना। इन माविमापा को विस्तार में देखें ना उननाम मंद होते है...वे मभी जीव का बम्प नही है, पुद्गल कर्म के उदय में होने ॥३२॥ चौपाई--जब लग जान चेतना न्यागे। मसलग जीव विकल संसारो॥ जब घट जान चेतना जागो। तब मकिती महजबंगगी। मिस ममान अप निज माने । पर मंगोग भाव पर माने। महातम अनुभव अभ्याने। त्रिविष कर्म की ममता माते। रोहा-ग्यानबंन अपनी कपा, कहे पाप मो पाप । मैं मियाम्ब या विवं, कोने बहविधि पाप ।। संबंया-ह मारे महा मोह की विकलताई, तातहमकारणानकोनी जोव पानको। प्राप पाप कोन पोरन को उपदेशन, हुनी अनुमोदना हमारे पाहो बानको। मन परकायामें मगन कमायो कर्म, पाये भ्रम बालमें कहाए. हम पातकी। मानके बय मा हमागेशा ऐसी भाई, से भानु भामन अवस्था होत प्रातकी ॥२॥ उपजाति मोहाचरहमका समस्तमपि कर्म तत्ातिकम्य । मात्मनि चतन्यात्मति निर्माण नित्यमात्मना बत॥३॥
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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