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________________ समयसार कमश टोका ___ कर्मों के उदय में आत्मद्धि होने में शुद्ध बम्प मे भ्रष्ट होकर जो मंग गगादि अगद .रिणति हुई थी उसका त्याग कर तथा अपने द्वारा पहल किए हए अगद्ध कर्मों का प्रतिक्रमण करके मैं अब स्वयं ही चेतनामात्र बम्न के गद ग्वाप में अनभवप में प्रवर्तन करता है। मेरा शन ग्यम्प मवंकाल में जान मात्र है और समम्न कमों को उपाधि मे रहित है॥॥ मया-नान भान भामत प्रमाग ज्ञानवन्त कहे, कहणा निधान प्रमलान मेगेन्प है। कालमों प्रतीत कम जालमों प्रभोत जोग, जालमों प्रजोन जाको महिमा प्रनप है। मोरको विनास यह जगतको वाम मैं तो, जगतमों शून्य पाप पुन्य पन्ध कप है। पाप किनि किए कौन करे रिमो कौन, क्रियाको विचार सुपनेको और धूप है ॥३॥ उपजाति मोहविलाविजम्मितमिदमुत्यकर्म सकलमालोच्य । प्रात्मनि चतन्यात्मनि निष्कणि नित्यमात्मना बत्तं ॥३॥ जितना भी अगुदपना अथवा मिथ्यान्व के प्रभुत्वपने के कारण फैला हुआ नानावग्णादि पुद्गल कर्म पिंड जो वर्तमान काल में उदय रूप हैद गद जीव का म्वरूप नहीं है मा विचार करके मैं उनमें स्वामित्वपना छोड़ना ह ओर पर द्रव्य को बिना सहायता के अपनी ही सामर्थ्य में अपने में सर्वथा उपादेय बद्धि करके प्रवनंन करता है । मैं शुद्ध चेतना मात्र स्वरूप ह और ममस्त कर्मो को उपाधि मे रहित हूं ॥३४॥ दोहा-करणी हितहरलो सरा, मुकति वितरली नाहि । गनी बंप परति वि, सनो महाक माहि ॥ मया---करणी की परणी में महा मोह राजा बसे, करणी प्रमान भाव रामसकी पुरी है। करलो करम काया पुदगल की प्रति चाया, करली प्रमट मावा मिसरीको धुरी है।
SR No.010810
Book TitleSamaysaar Kalash Tika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasen Jaini
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1981
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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