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________________ चतुर्थ षड्जीवनिका अध्ययन (१२) दोहा - जो जीवहु जाने नहीं, अरु जीव-अजीव न जानतो सो अर्थ - जो जीवों को भी नहीं जानता, अजीवों को भी नहीं जानता, वह जीव और अजीव को न जानने वाला संयम को कैसे जानेगा ? अजीबहु न जान । संजम किम जान || (१३) दोहा - जो जीवहु को जानई. अरु अजीव हूं जान । जीव-अजीर्बाह जानतो, सो संजम हूं जान ॥ • अर्थ- जो जीवों को भी जानता है और अजीवों को भी जानता है, वहीजीव और अजीव दोनों को जाननेवाला ही संयम को जान सकेगा । (१४) दोहा - जाने जीव अजीव जब, दोऊ जानत जोय । तब बहुविध गति जानई, सब जीवनिकों सोप ॥ अर्थ- जब मनुष्य जीव और अजीव इन दोनों को जान लेता है, तब वह सब जीवों की बहुविध गतियों को भी जान लेता है । (१५) दोहा - जब बहुविध गति जान ही, सब जीवनिकों जान । तब जाने बंध रु मुकति, पुन्य-पाप पहिचान ॥ दोहा अर्थ- - जब मनुष्य सब जीवों की बहुविध गतियों को जान लेता है, तब वह पुण्य-पाप बन्ध और मोक्ष को भी जान लेता है । " (१६) - जब जाने बंध रु मुकति, तब सुर-नर के भोग सब ५३ पुन्य पाप पहिचान । लेत असार सु जान ।। अयं - जब मनुष्य पुण्य-पाप बन्ध और मोक्ष को जान लेता है, तब जो भी देवों और मनुष्यों के भोग हैं, उनसे विरक्त हो जाता है ।
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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