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________________ चतुर्थ षड्जीवनिका अध्ययन चौपाई- चिरंजीव, मैंने यों सुन्यो, वा भगवतने ऐसो मन्यो । निश्चयतें षट्जीवनिकाय, नामक जो यह हैं अध्याय ॥१॥ महावीर अमन जु भगवान्, काश्यपगोत्री ने यह जान। भली भांति सों भाल्यो याहि भली-भाँति परकास्यो ताहि ।।२।। . सो पढ़नो उत्तम है मोय, धरम ज्ञान को पाठ जु सोय। अर्थ-हे आयुष्मन्, मैंने सुना है उन भगवान् ने इस प्रकार कहा-निन्य प्रवचन में निश्चय ही षड्जीविनिका नामक अध्ययन काश्यपगोत्री श्रमण भगवान् महावीर द्वारा प्रवेदित सु-आख्यात और सु-प्रज्ञप्त है। इस धर्म-प्रज्ञप्ति अध्ययन का पठन मेरे लिए श्रेयस्कर है। चौपाई- निहचयतें षट् जीवनिकाय, नामक कौन अहे अध्याय । महावीर स्त्रमन जु भगवान, काश्यपगोत्री ने जो जान ॥१॥ भली भांति सों भाल्यो जाहि, भली-भांति परकास्यो आहि । सो पढ़नो उत्तम है मोय, धरम ज्ञान को पाठ ज होय ॥२॥ अर्थ-यह षड्जीवनिका नामक अध्ययन कौन-सा है जो काश्यपगोत्री श्रमण भगवान महावीर द्वारा प्रवेदित सु-आख्यात और सु-प्रज्ञप्त है, जिस धर्म-प्रज्ञप्ति अध्ययन का पठन मेरे लिए श्रेयस्कर है ? । चौपाई- निहवय तें षट्जीवनिकाय, नामक यह कहियत अध्याय । महावीर वमन जु भगवान, काश्यपगोत्री ने जो जान ||१||
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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