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________________ प्रथम द्रुमपुष्पिका अध्ययन (१) दोहा उत्तम मगल धरम है, जाको मन नित धरम में, संयम तप रु दयाहि । देवहु वंदत ताहि ॥ अर्थ - अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म उत्कृष्ट मंगल है। जिनका मन सदा धर्म में संलग्न रहता है उसे देव भी नमस्कार करते हैं । (२) दोहा अर्थ - जैसे भ्रमर वृक्ष के पुष्पों से थोड़ा-थोड़ा रस पीता है, किन्तु किसी पुष्प - म्लान नहीं करता है और अपने को भी तृप्त कर लेता है । दोहा जैसे तरु के कुसुम में, सो पोखत हैं आपकों, मधुप पियें रस आय । सुमनहं नाहि सताय ॥ (३) ये साधू जन जगत में, अहँ श्रमन गत-संग । दान भात सोधनहरत, ज्यों सुमननि में भृंग ॥ अर्थ – उसीप्रकार लोक में जो संग-मुक्त श्रमण साधु हैं, वे दाता के द्वारा दिये जाने वाले निर्दोष आहार के अन्वेषण में रत रहते हैं जैसे भ्रमर पुष्पों में ।
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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