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________________ नवम विनयसमाधि अध्ययन (तृतीय उद्देशक) बेतालछन्द- अगनिहोत्री करत जैसे अगनि को सनमान, आचार्य की आराधनामें त्यों धरै अवधान । दोठ-इंगित सों हिये के भाव को लखि जोय, __ करत सेवा भलो विधि सों पूज्य सोई होय ।। अर्थ-जैसे अग्निहोत्री ब्राह्मण अग्नि की शुश्र षा करता हुआ सदा जागरूक (सावधान) रहता है, वैसे ही जो साधु आचार्य की शुध पा करता हुआ सदा सावधान रहता है, जो आचार्य के आलोकित (अवलोकन-दृष्टि) और इंगित (हृदय के अभिप्राय) को जानकर जो तदनुकूल उनकी आराधना करता है, वह साधु पूज्य है। वेतालछन्द- करन हेतु आचार-प्रापति करइ विनय-प्रयोग, गहत गुरु के वचन कों मवचन के संजोग । जया गुरु उपदेश दोनों चहत करनों सोय, खेद उपजावै न गुरु को पूज्य सोई होय ।। अर्थ-जो साधु पांच प्रकार के आचार की प्राप्ति के लिए विनय का प्रयोग करता है, आचार्य की शुश्रुषा करता हुआ उनके वचनों को ग्रहण कर उपदेश के अनुसार आचरण करता है और जो गुरु की किसी भी प्रकार से आशातना नहीं करता है, वह पूज्य है। २२६
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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