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________________ सप्तम वाक्यशुद्धि अध्ययन १५१ अजवारप को रूप जवारप, देखि जपारय आले ॥ सो नर बातें पाप हि परसं का फिर मुठ जु भात ॥ अर्थ जो पुरुष सत्य दिखने वाली असत्य वस्तु का आश्रय लेकर बोलता है अर्थात् पुरुष वेषधारी स्त्री को पुरुष कहता है, उससे भी वह पाप से स्पृष्ट होता है, तो फिर उसका क्या कहना जो साक्षात् मृषा (झूठ) बोले ? अर्थात् उससे तो प्रबलतर पाप कर्म का बन्ध होगा ही। (६-७) कवित्ततातें 'हम जायगे' वा भासन करेंगे ऐसे, अथवा 'अमुकं काज होयगो हमारे यो। 'ऐसो मैं करूंगो' तथा 'करंगो हमारे यह', इत्यादिक भाषा जे हैं तिन्हें न उचारे यों। जो हैं होनहार अब तामें संकनीय सो तो, त्यों ही भूत वर्तमान संकित निवारे यो। प्रवचन बीच कहे वचन विचारे सदा, धोरवान मुनि कहे वचन विचारे यो । ___ अर्थ-इसलिये 'हम जायेंगे' 'कहेंगे', 'हमारा अमुक कार्य हो जायगा', मैं यह करूंगा, अथवा यह व्यक्ति यह कार्य करेगा, यह और इस प्रकार की दूसरी भाषा जो भविष्य-सम्बन्धी होने के कारण (सफलता की दृष्टि से) शकित हो, अथवा वर्तमान और अतीतकाल-सम्बन्धी अर्थ के बारेमें शंकित हो, उसे भी धीर वीर पुरुष न बोले । (८-६-१०) चौपाई- भत भविष्यत कालहु माहीं, अथवा वर्तमान को छाहीं। जौन अर्थ को जानं नाही, तो न कहें यह यों ही आही॥ भूत भविष्यत कालनि माहीं, अथवा वर्तमान को छाहीं। जा थल में कछु है संदेह, 'यह यों ही है' कहे न येह ॥ भूत भविष्यत कालहु माही, अथवा वर्तमान को छाहीं । जा पल में कछु नाहिं संबेह, 'यह यों ही हैं' कहिये येह ॥ अर्थ-- भूत, वर्तमान और भविष्य काल-सम्बन्धी जिस अर्थ को सम्यक् प्रकार से न जाने उसे 'यह इस प्रकार ही है, ऐसा न कहे । भत. वर्तमान और भविष्य काल सम्बन्धी जिस अर्थ में शंका हो, उसे 'यह इस प्रकार ही है', ऐसा न कहे । किन्तु भूत, वर्तमान और भविष्य काल-सम्बन्धी जो अर्थ निःशंकित हो, अर्थात् जिसके विषय में पूर्ण निश्चय हो उसके विषय में 'यह इस प्रकार ही है' ऐसा कहे ।
SR No.010809
Book TitleAgam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages335
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashvaikalik
File Size13 MB
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