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________________ उत्तमसंयम 'संयमनं संयमः । अथवा व्रतममितिकपायदण्डेन्द्रियाणां धारणानुपालननिग्रहत्यागजयाः संयमः' ।' संयमन को संयम कहते हैं; संयमन अर्थात् उपयोग को परपदार्थ से समेट कर प्रात्मसन्मुख करना, अपने में सीमित करना, अपने में लगाना। उपयोग की स्वसन्मुखता, स्वलीनता ही निश्चयसंयम है। अथवा पाँच व्रतों का धारण करना, पांच समितियों का पालन करना, क्रोधादि कपायों का निग्रह करना, मन-वचन-कायरूप तीन दण्डों का त्याग करना और पाँच इन्द्रियों के विषयों को जीतना संयम है। संयम के साथ लगा 'उत्तम' शब्द सम्यग्दर्शन की सत्ता का सूचक है। जिमप्रकार बीज के बिना वृक्ष की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और फलागम संभव नहीं है; उसीप्रकार सम्यग्दर्शन के विना संयम की उत्पनि, स्थिति, वृद्धि एवं फनागम मंभव नहीं है। इम मंदर्भ में महान दिग्गज प्राचार्य वीरसेन म्वामी लिखते हैं : 'सो मंजमो जो सम्माविणाभावी ग्ण अण्णो' ।' संयम वही है, जो मम्यक्त्व का अविनाभावी हो, अन्य नहीं । इसी बात को 'धवला, प्रथम पुस्तक' में इसप्रकार प्रश्नोत्तर के रूप में दिया गया है : प्रश्न – कितने ही मिथ्यादृष्टि संयत (संयमी) देखे जाते हैं ? उत्तर- नहीं; क्योंकि सम्यग्दर्शन के विना संयम की उत्पत्ति ही नहीं हो मकती। ____संयम मुक्ति का साक्षात् कारगा है । दुःखों से छूटने का एकमात्र उपाय सम्यग्दर्शनमहित संयम अर्थात उत्तमसंयम ही है। विना ' धवला पुस्तक १, खण्ड १, भाग १, मूत्र ४, पृष्ठ १४४ २ घवला पुस्तक १२, खण्ड ४, भाग २, सूत्र १७७, पृष्ठ ८१ ' धवला पुस्तक १, खण्ड १, भाग १, मूत्र १३, पृष्ठ ३७८ - --- -- ---
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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