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________________ ७६ धर्म के दशलक्षरण व्रत और महाव्रतों को प्राचार्य उमास्वामी ने तत्त्वार्थसूत्र में प्रस्रवाधिकार में लिया है । यद्यपि उन्हें कहीं-कहीं उपचार से धर्म कहा है, पर जो प्रास्रव हों, बंध के कारण हों; उन्हें निश्चय से धर्म संज्ञा कैसे हो सकती है ? गुप्ति, समिति भी उत्तमसत्यधर्म नहीं हैं । तात्पर्य यह है कि जिस उत्तमसत्यधर्म की चर्चा यहाँ चल रही है; गुप्ति, समिति वह धर्म नहीं हैं । ध्यान देने योग्य बात यह है कि गुप्ति, समिति आदि के प्रतिरिक्त पृथक्रूप में दशधर्मों की चर्चा प्राचार्यों ने की है । यदि सभी को धर्म ही कहना है तो इनको अलग से धर्म कहने का क्या प्रयोजन ? जिस अपेक्षा से इन्हें पृथक् से धर्म कहा है उसी अपेक्षा से मैं कहना चाहूँगा कि वे सब इन दशधर्मों में से कोई धर्म नहीं हैं । अथवा जिसकी चर्चा चल रही है वह 'सत्यधर्म' वे नही हैं। अधिक स्पष्ट कहूँ तो निश्चय से वचन का सत्यधर्मं से कोई वास्ता नहीं है । क्योंकि अणुव्रतियों और महाव्रतियों का सत्य बोलना सत्याणुव्रत और सत्यमहाव्रत में जायगा, हित-मिन-प्रिय बोलना भाषाममिति में तथा नहीं बोलना वचनगुप्ति में समाहित हो जायगा । अव वचन की ऐसी कोई स्थिति शेष नहीं रहती जिसे सत्यधर्म में डाला जावे । यदि सत्य बोलने को सत्यधर्म मानें तो सिद्धों के सत्यधर्म नहीं रहेगा, क्योंकि वे सत्य नही बोलते । वे बोलते ही नहीं तो फिर सत्य और झूठ का प्रश्न ही कहाँ उठता है ? क्या सत्यधर्म के धारी को बोलना जरूरी है ? क्या जीवनभर मौन रहने वाला सत्यधर्म का धारी नहीं हो सकता ? इसमे वचने के लिए यदि यह कहा जाय कि वे मत्य तो नहीं बोलते. पर झूट भी तो नहीं बोलते; अतः उनके सत्यधर्म है । तो फिर सत्य बोलना सत्यधर्म नहीं रहा, बल्कि झूठ नहीं बोलना मत्यधर्म हुआ । पर यह बात भी तर्क की तुला पर सही नहीं उतरनी । क्योंकि यदि झूठ नहीं बोलने को सत्यधर्म मानें तो फिर वचनव्यवहार से रहित एकेन्द्रियादि जीवों को सत्यधर्म का धारी मानना होगा, क्योंकि वे भी कभी झूठ नहीं बोलते। जब वे बोलते ही नहीं तो फिर झूठ बोलने का प्रश्न ही कहाँ उठता है ? इसप्रकार हम देखते हैं कि न तो सत्य बोलना ही सत्यधर्म है और न झूठ नहीं बोलना ही ।
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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