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________________ उरामसत्य ७५ उमका मिलना सम्भव है, पर जिसकी खोज ही खो गई हो वह कैसे मिले ? जब तक सत्य को समझते नहीं, खोज चालू रहती है। किन्तु जब किसो गलन चीज को सत्य मान लिया जाता है तो उसकी खोज भी वन्द कर दी जाती है। जव खोज ही बन्द कर दी जावे तो फिर मिलने का प्रश्न ही कहाँ रह जाता है ? हत्यारे की खोज तभी तक होती है जब तक कि हत्या के अपराध में किसी को पकड़ा नहीं जाता। जिसने हत्या नहीं की हो, यदि उसे हत्या के अपगर में पकड़ लिया जाय, सजा दे दी जाय, तो असली हत्यारा कभी नहीं पकड़ा जायगा । क्योंकि अब तो फाइल ही बन्द हो गई, अब तो जगत की दृष्टि में हत्यारा मिल ही गया, उसे सजा भी मिल गई। अब खोज का क्या काम ? जब खोज बन्द हो गई तो असली हत्यारे का मिलना भी असम्भव है। ___ इसोप्रकार जब सत्यवचन को सत्यधर्म मान लिया गया तो फिर असली सत्यधर्म की खोज का प्रश्न ही कहाँ रहा? सत्यवचन को सत्यधर्म मान लेने से सबसे बड़ी हानि यह हुई कि सत्यधर्म की खोज खो गई। सत्यधर्म क्या है ? यह नहीं जानने वाले जिज्ञासु कभी न कभी मत्यधर्म को पा लेंगे, क्योंकि उनकी खोज चाल है; पर सत्यवचन को ही सत्यधर्म मानकर वैठ जाने वालों को सत्य पाना सम्भव नही। अणुव्रत गृहस्थों के होते हैं, मुनियों के नहीं। महाव्रत मुनियों के होते हैं, गृहस्थों के नहीं । इसीप्रकार भाषासमिति और वचनगुप्ति मुनियों के होती हैं, गृहस्थों के नहीं। अणुव्रत, महाव्रत, गुप्ति और समिति गहस्थों और मुनियों के होते हैं; सिद्धों के नहीं, अविरत मम्यग्दृष्टियों के भी नहीं । जबकि उत्तमक्षमादि दशधर्म अपनी-अपनी भूमिकानुसार अविरत सम्यग्दृष्टियों से लेकर सिद्धों तक पाये जाते हैं। वाणी पुद्गल की पर्याय है और सत्य है आत्मा का धर्म । प्रात्मा का धर्म आत्मा में रहता है, शरीर और वाणी में नहीं। जो आत्मा के धर्म हैं, उनका सम्पूर्ण-धर्मों के धनी सिद्धों में होना अनिवार्य है। उत्तमक्षमादि दशधर्म जिनमें सत्यधर्म भी शामिल है, सिद्धों में विद्यमान है; पर उनमें सत्यवचन नहीं है। अतः सिद्ध होता है कि निश्चय से सत्यवचन सत्यधर्म नहीं है। यहां एक प्रश्न सम्भव है कि क्या अणुव्रत, महाव्रत धर्म नहीं ? क्या समिति, गुप्ति भी धर्म नहीं ?
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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