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________________ २२ 0 धर्म के बालक्षण ऐसे लोग दुनिया में भले ही कम मिलें जो गुणों को अवगुण रूप में प्रस्तुत करें, पर ऐसे चापलूस पग-पग पर मिलेंगे जो छोटे से गुण को बढ़ा-चढ़ाकर कहते हैं। लखपति को करोड़पति कहना साधारण-सी बात है। एक बात यह भी है कि निंदा करने वाले प्रायः पीठ-पीछे निदा करते हैं, मुंह के सामने निंदा करने वाले बहुत कम मिलेंगे; पर प्रशंसा अधिकतर मुंह पर ही की जाती है, पीठ-पीछे बहुत कम । वे लोग बड़े ही भाग्यशाली हैं जिनकी प्रशंसा लोग पीठ-पीछे भी करें। अतः प्रशंसा निंदा से अधिक खतरनाक है।। प्रतिकूलता में क्रोध और अनुकूलता में मान आता है । असफलता क्रोध और सफलता मान की जननी है। यही कारण है कि असफल व्यक्ति क्रोधी होता है और सफल मानी । जब कोई व्यक्ति किसी काम में असफल हो जाता है तो वह उन स्थितियों पर क्रोधित हो उठता है जिन्हें वह असफलता का कारण समझता है और मफल होने पर सफलता का श्रेय स्वयं लेकर अभिमान करने लगता है। यद्यपि मान भी क्रोध के समान खतरनाक विकार है, पर लोग उसे न जाने क्यों कुछ प्यार करते हैं ? मानपत्र सबके घरों में टंगे मिल जावेंगे, किसी के घर पर क्रोधपत्र नहीं मिलेगा। क्रोधपत्र कोई किसी को देता भी नहीं है, और कोई देगा भी तो कोई लेगा नहीं, घर में लगाने की बात तो बहत दूर है। पर लोग मानपत्र बड़ी शान से लेते हैं और उसे बड़े ही प्यार से घर में लगाते हैं। बहुत लोग तो उसे ज्ञान-पत्र समझते हैं जबकि उस पर साफ-साफ लिखा रहता है मानपत्र । इतने से भी सन्तोष नहीं होता है तो फिर उसे अखबारों में पूरा का पूरा छपाते हैं. चाहे उसका विज्ञापन चार्ज ही क्यों न देना पड़े। यदि कभी मानपत्र मिल जाता है तो उसे संभाल कर रखते हैं, पर अपमान तो अनेक बार मिला है पर......."| पुण्यहीनों का मान से अधिक अपमान ही होता है । __ मान एक मीठा जहर है, जो मिलने पर अच्छा लगता है, पर है बहुत दुखदायक । दुखदायक क्या दुखरूप ही है, क्योंकि है तो अाखिर कषाय ही। ___ यद्यपि मान भी क्रोध के समान ही आत्मा का अहित करने वाला विकार है तथापि वाह्य में क्रोध के समान सर्व-विनाशक नहीं।
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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