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________________ २४ धर्म के दशलक्षण अब प्रश्न यह पैदा होता है कि मिथ्यादष्टि के क्रोध का प्रभाव क्यों नहीं हो सकता ? उसके सदा अनन्तक्रोध क्यों रहता है ? इसका उत्तर यह है कि पर में कर्तृत्वबुद्धि से ही अनन्तानुबन्धी क्रोध उत्पन्न होता है। जब कोई परपदार्थ उसकी इच्छा के अनुकूल परिणमित नहीं होता है, तो वह उस पर क्रोधित हो उठता है। इसका अर्थ यह हुआ कि लोक में जो-जो परपदार्थ उसकी इच्छा के अनुकूल परिगगमित न होंगे, वे सब उसके क्रोध के पात्र होंगे। परपदार्थ हैं अनन्त, अतः अभिप्राय में अनन्त परपदार्थ उसके क्रोध के पात्र हुए; यही है अनन्तानुबन्धी क्रोध, क्योंकि उमने अनन्त परपदार्थों से अनुबन्ध किया है। इसप्रकार हम देखते हैं कि मिथ्यादृष्टि के परपदार्थों में कर्तृत्व बुद्धि रहती है। इसकारगा उसके क्रोधादि मंद भले ही हो जाएं, किन्तु जब उसके अनन्तानुबन्धी कषाय का भी प्रभाव नहीं होता है तो उत्तमक्षमादि धर्म प्रकट कैसे हो मकते हैं ? दूसरी बात यह भी तो है कि उत्तमक्षमादि दशधर्म सम्यकचारित्र के ही रूप हैं और सम्यक्चारित्र सम्यग्दर्शन के बिना होता नहीं, इसलिए यह स्वतः सिद्ध है कि मिथ्यादृष्टि के उत्तमक्षमादि धर्म प्रकट नहीं हो सकते। निश्चय से तो क्षमास्वभावी आत्मा के आश्रय से पर्याय में क्रोधरूप विकार की उत्पत्ति नही होना ही उत्तम क्षमा है; पर व्यवहार से क्रोधादि के निमित्त मिलने पर भी उत्तेजित नहीं होना, उनके प्रतिकाररूप प्रवृत्ति नहीं होने को भी उत्तमक्षमा कहा जाता है। दशलक्षण पूजन में उनमक्षमा का वर्णन करते हुए कविवर द्यानतरायजी ने कहा है :"गाली मुन मन खेद न आनौ, गुन को ग्रौगुन कहै बखानौ । कहि है बखानौ वस्तू छोने, बाँध-मार बहविधि करै । घरतें निकारै तन विदार, बैर जो न तहां धरै ॥" उक्त छन्द में निमित्तों की प्रतिकूलता में भी जो शान्त रह सके, वही उत्तमक्षमा का धारी है। ऐसा कहा गया है। गाली सुनकर भी जिसके हृदय में खेद उत्पन्न न हो, वह उत्तमक्षमावान है। बहत से लोग ऐसा कहते पाये जाते हैं कि कैसे तो मेरा स्वभाव एकदम शांत है, पर कोई छेड़ दे तो फिर मुझसे शांत नहीं रहा जाता।
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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