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________________ उत्तमक्षमा २३ । ये सभी विकार क्रोध के ही छोटे-बड़े रूप हैं सभी मानसिक शान्ति को भंग करने वाले हैं, महानता की राह के रोड़े हैं। इनके रहते कोई भी व्यक्ति महान नहीं बन सकता, पूर्णता को प्राप्त नहीं हो मकता । यदि हमें महान बनना है, पूर्णता को प्राप्त करना है तो इन पर विजय प्राप्त करनी ही होगी, इन्हें जीतना ही होगा । पर कैसे ? प्राचार्यकल्प पंडित टोडरमलजी के अनुसार - "अज्ञान के कारण जब तक हमें पर-पदार्थ इष्ट-अनिष्ट प्रतिभासित होते रहेंगे तब तक क्रोधाधि की उत्पत्ति होती ही रहेगी, किन्तु जब तत्त्वाभ्यास के बल से पर-पदार्थों में से इष्ट अनिष्ट बुद्धि ममाप्त होगी नव स्वभावतः क्रोधादि की उत्पत्ति नहीं होगी ।" आशय यह है कि क्रोधादि की उत्पत्ति का मूल कारण, अपने सुख-दुःख का कारण दूसरों को मानना है । जब हम ग्रपने सुख-दुख का कारण अपने में खोजेंगे, उनका उत्तरदायी अपने को स्वीकारेंगे, तो फिर हम क्रोध करेंगे किस पर ? अपने अच्छे-बुरे और सुख-दुख का कर्ना दूसरों को मानना ही क्रोधादि की उत्पत्ति का मूल कारण है । क्षमा के साथ लगा उत्तम शब्द सम्यग्दर्शन की सत्ता का सूचक है । सम्यग्दर्शन के साथ होने वाली क्षमा ही उत्तमक्षभा है । यहाँ एक प्रश्न संभव है - जबकि क्षमा का संबंध क्रोध के प्रभाव से है तो फिर उसका सम्यग्दर्शन से क्या संबंध ? यह शर्त क्यों कि उत्तमक्षमा सम्यग्दृष्टि को ही होती है, मिथ्यादृष्टि को नहीं ? जिसको क्रोध नही हुआ उसके उत्तमक्षमा हो गई, चाहे वह मिथ्यादृष्टि हो या सम्यग्दृष्टि । मिथ्यादृष्टि के उत्तमक्षमा हो ही नही सकती, यह अनिवार्य शर्त क्यों ? भाई ! बात ऐसी है कि क्रोध का प्रभाव आत्मा के प्राश्रय से होता है । मिथ्यादृष्टि के आत्मा का आश्रय नहीं है, अतः उसके क्रोध का प्रभाव नही हो सकता। इसलिए मिथ्यादृष्टि के क्रोध नहीं हुआ, यह बनता ही नहीं है । उसे जो 'क्रोध नही हुआ' ऐसा देखने में प्राता है, वह तो क्रोध का प्रदर्शन नहीं हुआ वाली बात है । क्योंकि कभीकभी जब क्रोध मन्द होता है तो क्रोध का प्रदर्शन नहीं देखा जाता है, उसे ही अज्ञानी क्रोध का प्रभाव समझ लेते हैं और उत्तमक्षमा कहने लगते हैं । वस्तुतः वह उत्तमक्षमा नहीं, उत्तमक्षमा का भ्रम है ।
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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