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________________ उत्तम च १६१ इस स्थिति में ज्ञान के विकसित होने एवं इन्द्रियों के उपयोग की शक्ति बटी हुई होने से आत्मज्ञान होने की शक्ति प्रकट हो जाती है । इसप्रकार हम देखते हैं कि पंचेन्द्रियों के ज्ञेय एवं भोग - दोनों प्रकार के विषयों के त्यागपूर्वक आत्मलीनता ही वास्तविक अर्थात् निश्चयब्रह्मचर्य है । अंतरंग अर्थात् निश्चयब्रह्मचर्य पर इतना बल देने का तात्पर्य यह नहीं है कि स्त्री - सेवनादि के त्यागरूप बाह्य अर्थात् व्यवहारब्रह्मचर्य उपेक्षणीय है । यहाँ निश्चयब्रह्मचर्य का विस्तृत विवेचन तो इसलिए किया गया है कि - व्यवहारब्रह्मचर्य से तो सारा जगत परिचित है, पर निश्चयब्रह्मचर्य की ओर जगत का ध्यान ही नहीं है । जीवन में दोनों का सुमेल होना आवश्यक है । जिसप्रकार श्रात्मरमरणतारूप निश्चयब्रह्मचर्य की उपेक्षा करके मात्र कुशीलादि सेवन के त्यागरूप व्यवहारब्रह्मचर्य को ही ब्रह्मचर्य मान लेने के कारण उल्लिखित अनेक प्रपत्तियाँ आती हैं, उसीप्रकार विषयसेवन के त्यागरूप व्यवहारब्रह्मचर्य की उपेक्षा से भी अनेक प्रश्न उठ खड़े होंगे । जैसे - उपदेशादि में प्रवृत्त भावलिंगी सन्तों को भी तात्कालिक आत्मरमरणतारूप प्रवृत्ति के प्रभाव में ब्रह्मचारी कहना सम्भव न होगा; फिर तो मात्र सदा ही प्रात्मलीन केवली ही ब्रह्मचारी कहला सकेंगे। यदि आप कहें कि उनके जो प्रात्मरमणतारूप ब्रह्मचर्य है, उसका उपचार करके तब भी उन्हें ब्रह्मचारी मान लेंगे जबकि वे उपदेशादि क्रिया में प्रवृत्त हैं । तो फिर किंचित् ही सही, पर ग्रात्मरमणता के होने से अविरत सम्यग्दृष्टि को भी ब्रह्मचारी मानना होगा, जो कि उचित प्रतीत नहीं होता; क्योंकि फिर तो छ्यानवें हजार पत्नियों के रहते चक्रवर्ती भी ब्रह्मचारी कहा जायगा । अतः ब्रह्मचारी संज्ञा स्वस्त्री के भी सेवनादि के त्यागरूप व्यवहारब्रह्मचर्य के ही प्राधार पर निश्चित होती है । फिर भी आत्मरमरणतारूप निश्चयब्रह्मचर्य के प्रभाव में मात्र स्त्रीसेवनादि के त्यागरूप ब्रह्मचर्यं वास्तविक ब्रह्मचर्य नहीं है । पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावक के प्रनन्तानुबंधी एवं प्रप्रत्याख्यान कषायों के प्रभावपूर्वक जो सातवीं प्रतिमा के योग्य निश्चयब्रह्मचर्य
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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