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________________ बालक्षण महापर्व 0 ११ जो सभी को समानरूप से हितकारी है। अतः यह पर्व मात्र जनों का नहीं, जन-जन का पर्व है। इसे सम्प्रदायविशेष का पर्व मानना स्वयं माम्प्रदायिक दृष्टिकोण है। यह सब का पर्व है, इसका एक कारण यह भी है कि सभी प्राणी सुखी होना चाहते हैं और दुःख से डरते हैं। क्रोधादि भाव दुख के कारगा हैं और स्वयं दुखस्वरूप हैं एवं उत्तमक्षमादि भाव सुख के कारण हैं और स्वयं सुखम्वरूप हैं। अतः दुख से डरने वाले सभी सुखार्थी जीवों को क्रोधादि के त्यागरूप उत्तमक्षमादि दश धर्म परम आराध्य हैं। इमप्रकार सभी को सूखकर और मन्मार्गदर्शक होने से यह दशलक्षण महापर्व मभी का पर्व है। क्रोधादि विभावभावों के अभावरूप उत्तमक्षमादि दश धर्मों का विकास ही जिसका मूल है, ऐसे दशलक्षण महापर्व की सार्वभौमिकता का प्राधार यह है कि सर्वत्र ही क्रोधादिक को बग, अहितकारी और क्षमादि भावों को भला और हितकारी माना जाता है। ऐसा कौनसा क्षेत्र है जहाँ क्रोधादि को बुग और क्षमादि को अच्छा न माना जाता हो? वह मार्वकालिक भी इमी काग्गा है, क्योंकि कोई काल ऐसा नहीं कि जब क्रोधादि को हेय और उत्तमक्षमादि को उपादेय न माना जाता रहा हो, न माना जाता हो, और न माना जाता रहेगा। अर्थात मर्वकालों में इसकी उपादेयता अमंदिग्ध है । भूतकाल में भी क्रोधादि मे दुग्व व अशान्ति तथा क्षमादि से मुख व शान्ति की प्राप्ति होती देखी गई है, वर्तमान में भी देखी जाती है, और भविष्य में भी देखी जायगी। उत्तमक्षमादि धर्मों की सार्वभौमिक कालिक उपयोगिता एवं सुखकरता के कारगा ही दशलक्षगा महापर्व शाश्वत पर्यों में गिना जाता है और इसी कारण यह महापर्व है। यहाँ एक प्रश्न संभव है कि यह महापर्व कालिक है, अनादिअनन्त है, तो फिः इमके प्रारंभ होने की कथा शास्त्रों में क्यों आती है ? शास्त्री में आता है कि : ___ "कालचक के परिवर्तन में कुछ स्वाभाविक उतार-चढ़ाव पाते हैं, जिन्हें जैन परिभाषा में प्रवसपिणी और उत्सर्पिणी के नाम से जाना जाता है। प्रवसर्पिणी में क्रमशः ह्रास और उत्सर्पिणी में
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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