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________________ दशलक्षण महापर्व पों की चर्चा जब भी चलतो है तब-तब उनका संबंध प्रायः खाने-पीने और खेलने से जोड़ा जाता है-जैसे रक्षाबंधन के दिन ग्वीर और लड्डु खाये जाते हैं, भोरे खेले जाते हैं, राखी बांधी जाती है; होली के दिन अमुक पकवान खाये जाते हैं, रंग डाला जाता है, होली जलाई जाती है; दीपावली के दिन पटाके चलाये जाते हैं, दीपक जलाये जाते हैं, लड्डु चढ़ाये जाते हैं एवं अमुक पकवान खाये जाते हैं; प्रादि-आदि। पर अष्टाह्निका और दशलक्षण जैसे जैन पों का संबंध खाने और खेलने से न होकर खाना और खेलना त्यागने से है। ये भोग के नहीं, त्याग के पर्व हैं; इमीलिए महापर्व हैं। इनकी महानता त्याग के कारण है, आमोद-प्रमोद के कारण नहीं । आप किसी भी जैन से पूछिये कि दशलक्षरण महापर्व कैसे मनाया जाता है तो वह यही उत्तर देगा कि इन दिनों लोग संयम से रहते हैं, पूजन-पाठ करते हैं, व्रत-नियम-उपवास रखते हैं, हरित पदार्थों का सेवन नहीं करते । स्वाध्याय और तत्व-चर्चा में ही अधिकांश समय बिताते हैं । सर्वत्र बड़े-बड़े विद्वानों द्वारा शास्त्र सभाएँ होती हैं, उनमें उत्तमक्षमादि दश धर्मों का स्वरूप समझाया जाता है। सभी लोग कुछ न कुछ विरक्ति धाग्गा करते हैं, दान देते हैं, आदि अनेक प्रकार के धार्मिक कार्यों में संलग्न रहते हैं। मर्वत्र एक प्रकार से धार्मिक वातावरण बन जाता है। पर्व दो प्रकार के होते हैं -(१) शाश्वत और (२) सामयिक, जिन्हें हम कालिक और तात्कालिक भी कह सकते हैं। ___ तात्कालिक पर्व भी दो प्रकार के होते हैं -(१) व्यक्ति विशेप से मंबंधित और (२) घटना विशेष से संबंधित । दीपावली, महावीर जयन्ती, रामनवमी, जन्माष्टमी प्रादि पर्व व्यक्ति विशेष से संबंध रखने वाले पर्व हैं, क्योंकि दीपावली और महावीर जयन्ती क्रमशः महावीर के निर्वाण और जन्म से संबंध रखती हैं और रामनवमी और जन्माष्टमी राम और कृष्ण के जन्म से संबंधित हैं।
SR No.010808
Book TitleDharm ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1983
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size13 MB
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