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________________ आचा० ||६०४॥ जे कोइ स्त्रीसमूह छे तेने मोहरूप जाणीने तेओ पोते पुरुषने न त्यजे, ते पहेला पोते त्यजवी, आ तीर्थकरे कहेलुं छे, ते बतावे छे, 'मुनिना' श्री वर्धमानस्वामाने केवलज्ञान उत्पन्न थया पछी तेमणे कां छे केः-स्त्रीओ भाव वन्धनरूप छे' एवं पूर्वे प्रकर्षथी क छे, अने आपण का छे के अतिशय मोहना उदयथी पीडायलो ते 'उद्बाध्यमान' छे मः - शाथी ? उः - इन्द्रियोना ग्राम एटले तेओना धर्ममां फसतां पीडा त्यारे गच्छमां रहेला होय तो गुरु समजावे. प्रः - केवी रीते ? उ:- ते कहे छे के तेवो साधु निर्बल निःसार एटले लख्खु सुकुं खानारो बने, अथवा निर्बळ बनीने खाय, अर्थात् घणी तपस्या करवाथी शरीर थाकतां इन्द्रियोना विषय पण शांत थइ जाय छे, कारण के आहार ओछो वाथी वळ ओछु थइ जाय छे, ते बतावे छे. अवमोदरी (ओछूं खानुं ते) करे, अने जो अंतमांत खावा छतां पण मोह शांत न थाय, तो तेथी पण अस्निग्ध आहार वाल चणा विगेरेना ३२ कोळीया मात्र खाय, तेथी पण शांत न थाय, तो कायोत्सर्ग विगेरे काय क्लेशनो तप करे, ते बतावे छे. उर्ध्वस्थाने रहे तथा शीत अथवा उष्णता विगेरेमां (एले ठंडमां नदी किनारे अने उनाळामां तपेली रेतीमां) काउसग करे, तेथी पण शांत न थाय, तो गाम गाम विचरे जो के कारण विना विहार निषेध्यो छे, छतां मोह शांत करवा रोज चाली चालीने काया थकवीने मोह दूर करे, एथी वधारे शुं कहे ? अर्थात् जे कारणथी विषय इच्छा दूर थाय, तेनुं कृत्य करे अने छेवटे आहार पण त्याग करे, अतिपात करे (उंचेथी पडीने मरे) उद्दबन्धन करे (गळे फांसो खाय) पण स्त्रीमां मन न करे, (अपि समुच्चयना अर्थमां छे) खीमां जे मन गयुं, ते त्यजे, तेना परित्यागमां वे प्रकारना कामो (इच्छा काम मदन काम) पण दूरथी त्यजेला जाणवा. क छे के काम जानामि ते रूपं, सकल्पात् किल जायसे । न त्वां संकल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि ॥ १ ॥ सूत्रम् ॥ ६०४ ॥
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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