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________________ आचा० ॥६०५॥ 43RSHA-330 हे काम हुँ तारुं स्वरूप जाणुं छ, के तुं संकल्पथी उत्पन्न थाय छे पण हुँ तारो संकल्प करवानो नथी, तेथी तुं मारा हृदयमांदा आववानो नथी! सूत्रम् प्रश्न:-पण शा माटे स्त्रीमा मन न करवू ? उ:-स्त्रीसंघमां वर्तनारो अपरमार्थ दृष्टिवाळो प्रथमथीज ते स्त्रीनो संग न छोडवा पैसो पेदा करवा खेती वेपार विगेरेनी सावध क्रिया करतो अगणित (अत्यंत) भूख तरस ठंड ताप विगेरेना परिषहो सहेबाना आ र ॥६०५॥ | लोकमांज दुःखरूप दंडो सहे छे, अने ते दंडो स्त्री संवन्ध करवा पहेलांज कराय छे, (तेथी पूर्वे का छे) अने स्त्री ग्रहण कर्या पछी || विषयना निमित्तथी बंधायला पापवडे नरक विगेरेनां दुःखोना स्पर्शो भोगववा पडशे, स्त्रीना अकार्यमा प्रवर्तेलाने पूर्वे दंड अने पछी हाथ पग विगेरे छेदावाना स्पर्शो छे, अथवा पूर्वे (कोइ स्त्री साथे छुपुं कुकृत्य करतां) ताडना (लाकडीनो मार) विगेरे छे अने पछीथी स्त्रीनो संबन्ध तथा आलिंगन चुंबन विगेरे छे ते बतावे छे. . वन्दी ए आणेल अने रोकेल राजकुमारीए गवाक्षमाथी फेंक्यो ते नीचे पडेल आवीलने लेवाथी राजपुरुषोए देखवाथी ठोक्यो, त्यारे राजकुमारीने मूर्छा थवाथी तेने देखतां इन्द्रदत्त वणिकने प्रथमथी दन्डा खावा पड्या, अने पाछळथी कन्या मळतां स्पर्श विगेरेन सुख मळ्यु, अथवा कोइने प्रथम मुख विगेरेना स्पर्शी छे, अने पाछळथी ललितांग कुमारनी माफक वीजा व्यभिचारीओने दुःख पडे छे, 'किंच' वळी आ स्त्री संवन्धो क्लेश संग्रानो सङ्ग (संवन्ध) करावे छे, अथवा कलह (क्रोध) तथा आसङ्ग ते राग छे, ए६ टले रागद्वेष करावनारा छे, जो एम छे तो शुं करे, ते कहे छे. ऐहिक अमुष्मिक (आ लोक परलोक) संबन्धी अपायोना कारणे स्त्री 81 ल संगनी प्रत्युपेक्षावडे 'आगमेतत्ति' जाणीने आत्माने आसेवन (कुचाल) थी रोके, आ प्रमाणे हुँ कहुं छु, ते तीर्थकरना वचन BECAPAGE
SR No.010803
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrabahu, Shilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages890
LanguagePrakrit, Sanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size40 MB
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